बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥ 
१४३. उपदेश । झपताल ~
मना ! जप राम नाम लीजे,
साधु संगति सुमिर सुमिर, रसना रस पीजै ॥ टेक ॥
साधू जन सुमिरन कर, केते जप जागे ।
अगम निगम अमर किये, काल कोइ न लागे ॥ १ ॥
नीच ऊँच चिन्त न कर, शरणागति लीये ।
भक्ति मुक्ति अपनी गति, ऐसैं जन कीये ॥ २ ॥
केते तिर तीर लागे, बन्धन भव छूटे ।
कलि मल विष जुग जुग के, राम नाम खूटे ॥ ३ ॥
भरम करम सब निवार, जीवन जप सोई ।
दादू दुख दूर करण, दूजा नहिं कोई ॥ ४ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव मन को नाम - स्मरण का उपदेश कर रहे हैंकि हे हमारे मन! इस मनुष्य शरीर में अब राम - नाम का स्मरण कर और सच्चे संतों की संगति में राम - नाम के महत्त्व को जान कर रसना से निष्काम भाव से राम - नाम के स्मरण रूपी रस का पान करिये । कितने ही संतजन राम - नाम का जाप कर - करके मोह निद्रा से जागे हैं, ‘अगम’ = शास्त्र और ‘निगम’= वेद भी राम - नाम के माहात्म्य का वर्णन करते हैं कि यह राम - नाम का स्मरण जीव को अमर करता हैं और किसी भी प्रकार का कोई भी काल उस जीव का स्पर्श नहीं करता । इस राम का स्मरण नीच कुल का चाहे ऊँच कुल का । राम जी उन भक्तों को अपनी शरण में लेकर मोक्ष गति देते हैं । उनको अपनी अनन्य भक्ति देकर जीवन - मुक्ति द्वारा अपने समान राम रूप बना लिये हैं । इस कलिकाल में कितने ही संत राम - नाम को जपकर संसार - समुद्र से तैर कर जन्म - मरण रूप बन्धन से मुक्त हो गये हैं । कलियुग के पाप और शब्द आदि विषय, में सब रामनाम के स्मरण से अन्तःकरण से नष्ट हो जाते हैं । और पांच प्रकार का भ्रम और सकाम कर्म आदिकों के बन्धन राम - नाम के प्रताप से सब दूर हो जाते हैं । हे मन ! यह संत और भक्तों के जीवन रूप राम - नाम का तूँ अब जाप कर । इस संसार में राम - नाम के सिवाय दुःखों को दूर करने वाला और कोई भी उपाय नहीं है ।

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