शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥ 
http://youtu.be/N3e8mxa3UcQ
१४५. विरह । अड्डुताल ~
क्यों विसरै मेरा पीव पियारा, जीव की जीवन प्राण हमारा ॥ टेक ॥
क्यों कर जीवै मीन जल बिछुरै, तुम्ह बिन प्राण सनेही ।
चिन्तामणि जब कर तैं छूटै, तब दुख पावै देही ॥ १ ॥
माता बालक दूध न देवै, सो कैसे कर पीवै ।
निर्धन का धन अनत भुलाना, सो कैसे कर जीवै ॥ २ ॥
बरषहु राम सदा सुख अमृत, नीझर निर्मल धारा ।
प्रेम पियाला भर भर दीजे, दादू दास तुम्हारा ॥ ३ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सद्गुरुदेव इसमें विरह दिखा रहे हैं कि हे हमारे प्यारे पीव परमेश्‍वर ! आप मुझे क्यों भूल रहे हो ? आप तो हमारे जीव को जीवन और प्राणों से भी प्रिय हो । मछली जल से वियोग होने पर, कैसे जीवित रह सकती है ! हे प्राण स्नेही ? ऐसे हम आपके बिना कैसे जीवित रहें ? किसी के हाथ से चिन्तामणि रूप हीरा खो जाय, तब उसको भारी दुःख होता है और जब माता बच्चे को दूध न दे तो वह अपने आप कैसे पी सकता है ? जैसे निर्धन को अनायास धन प्राप्त हो जावे, और वह उस धन को अन्यत्र ऱख कर भूल जावे, तो फिर वह कैसे जीवित रह सकता है ? इसी प्रकार हम विरहीजन आपके बिना कैसे जीवित रह सकते हैं ? हे राम ! आप सदा ही सुख रूप हो । आपके दर्शनरूपी आनन्द की हमारे हृदय में बरसा करो । और फिर आपका अखंड - प्रेम, वृत्ति रूप प्याले में भर - भर कर हमको पिलाओ । हे प्रभु ! हम तो आप ही के विरहीजन दास हैं ।

फकीर रुपया धर धरे, नारनोल के मांहि । 
फौज गई कोउ ले गयो, शीश टेक मर जांहि ॥ १४५ ॥
दृष्टान्त ~ एक फकीर नारनोल की एक बगीची में रहता था । बगीची के बाहर जमीन में कुछ रुपये गाड़ दिये । एक समय सैनिक लोगों ने वहाँ आकर बगीची के आस - पास पड़ाव डाला और रोटी बनाने को जमीन खोदकर चूल्हा बनाया, उसी जगह । सैनिक को रुपये मिल गये । जब सेना वहाँ से रवाना हो गई, फकीर ने जाकर अपने रुपये देखे, तो वहाँ नहीं मिले । वहीं सिर टेक करके जान दे दी । यह माया ऐसे प्राण ले लेती है ।

एक कहत धोवत गई, एक सुनत बोराइ । 
सो कैसे धीरज धरै, जो धरी हाथ सौं जाइ ॥ १४५ ॥
दृष्टान्त ~ एक गरीब बनिये का लड़का था । नदी पर स्नान किया । हाथ धोने को मिट्टी खोदी । वहाँ एक धन का बर्तन निकल आया । लड़के ने खोलकर देखा तो अशर्फी भरी हैं । ईंट लेकर माँजने लगा कि इसको उज्जवल कर लूँ । कोई जानेगा कि पानी ले जा रहा है । फिर उस बर्तन के दोनों किनारे पकड़ कर गहरे पानी में जाकर गोता लगाया, बर्तन हाथ से छूट कर अथाह पानी में चला गया । वह पागल हो गया और “हाय ! धोवत गई”, इस प्रकार कहता हुआ घर आया । लोगों ने देखा, इसको कोई भूत - प्रेत लग गया । बाप ने पूछा ~ “क्या गई धोवत ?” उपरोक्त बात पिता को सुनाई । पिता सुनकर पागल हो गया । वह बोला ~ “हाय ! क्यों धोवे था । हाय ! क्यों धोवे था” । बेटा कहे, “धोवत गई ।” बाप कहे, “हाय ! क्यों धोवे था ? ऐसे ही कपड़े में लपेट कर धन के बर्तन को क्यों नहीं ले आया ?” यह माया इस प्रकार जीवों को पागल बना देती है ।

Why has my dearly Beloved forgotten me?
You are my very life breath.
Like a fish separated from water,
How can I survive without You, O my Lord?
When the wish-granting gem slips from his hand,
one cannot but suffer.
When the mother gives no milk,
how can the baby drink?
If a pauper’s money is lost somewhere,
how can he survive ?
Shower forth eternally, O God,
the pure torrential currents of blissful Nectar,
And give Dadu, Your slave, the cup
of Your love full to the brim.
(English translation from "Dadu~The Compassionate Mystic" 
by K. N. Upadhyaya~Radha Soami Satsang Beas)



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