रविवार, 15 फ़रवरी 2015

= १६२ =

daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू मेरा वैरी मैं मुवा, मुझे न मारै कोइ ।
मैं ही मुझको मारता, मैं मरजीवा होइ ॥
वैरी मारे मरि गये, चित तैं विसरे नांहि ।
दादू अजहूँ साल है, समझ देख मन मांहि ॥
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साभार : Vijay Shukla ~

मित्रों.... संतों से सत्संग से हमेशा लाभ-लाभ ही मिलता है । ऐसा ही हमें प्राप्त एक सत्संग आप सबके लिए प्रस्तुत है :-
बात ५० वर्षो पूर्व की है । तीर्थराज प्रयाग क्षेत्र में एक महात्मा माँ गंगा के किनारे घूमता थे । कमर में लंगोटी और शरीर में धूलल पुती हुई । मौसम चाहे जैसा हो...उनका जीवन एक रस ही रहा करता था ।
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परन्तु कुछ ही दिनों में प्रयाग क्षेत्र से महात्मा का दर्शन मिलना बंद हो गया । करीब ५-१० वर्षो के पश्चात् प्रयाग के कुछ संत हरिद्वार से लौट रहे थे । मेरठ के करीब उन्हें प्यास लगी और कुए पर गए,पानी पीने के लिए तो देखा की वही महात्मा शिखा(चोटी) रखे हुए, जनेऊ पहने हुए, तौलिया शरीर पर डाले, उसी कुए से पानी खीच रहा था ।
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उसने संत की टोली को जल पिलाया । लेकिन एक संत ने उसे पहचान लिया और पूंछा- तुम वही हो न ? वह बोला: हां वही है । संत महापुरुष ने पूछा: अब तुम्हारी क्या स्थिति है ? तब तो तुम बड़े मस्तान थे ।
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उसने वर्णन किया: स्वामीजी ! मैं एक गाँव में भिक्षा के लिए गया था, वही पर एक भैंस ने मेरी पीठ में ऐसी सींग लगाईं की मैं घायल हो गया । कुछ स्वस्थ होने पर हमने गाँव वालों से कहा की तुम भैंस रखना बंद कर दो । यह महिषाशुर का वंशज है, इसका रंग भी काला(तमोगुणी) है । इसका दूध पीने से मनुष्य की बुद्धि बिगड़ जाती है, इसको गाँव से हटाओ ।
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उस गाँव में पंडित भी थे । उसने कहा कि भैंस का दूध तो पेय है और श्राद्ध में भी एक दिन भैंस के दूध का विधान है । दूध से पिंडदान करने का भी विधान है और पंडितजी शास्त्र ले आये । हमको शास्त्र आता नहीं था तो हमने शास्त्र सीखने के लिए विद्याध्ययन शुरू कर दिया है .. जिससे मैं यह साबित कर सकूँ कि ::: भैस का दूध नहीं पीना चाहिए और भैंस नहीं रखना चाहिए ।
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अब वह बेचारे की साधना, वह ब्रह्म-चिंतन, श्रवण, मनन, निदिध्यासन, सब भैंस की दुश्मनी के कारण छूट गया । बड़ा ही विरक्त महात्मा था वह । असल में मनुष्य जब बदला लेने में पड़ जाता है तो सारी मस्ती उड़ जाती है । किसी ने कुछ कह दिया, तुम्हें अगुठा दिखाया तो वह तो तुम्हारे काम/साधना में बाधा डालना चाहता है ।
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यदि तुम उससे प्रभावित हुए तो तुम उसका अपने दुश्मन का काम करते है । तुम्हे उसकी चाल में नहीं आना है, उसके षडयंत्र में नहीं फंसना है । वह दुश्मन तुम्हें तुम्हारे काम/साधना से च्युत करना चाहते हैं । परन्तु तुम्हें च्युत नहीं होना है । अपना काम/साधना करना है ।
शुभ-प्रभात मित्रो....जय गुरुदेव....
जय माँ ललिताम्बा..... नमो नारायण भगवन.

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