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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग केदार ६( गायन समय संध्या ६ से ९ बजे)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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१३८. प्रश्न उत्तर । दादरा ~
कोई जानै रे, मर्म माधइये केरो ?
कैसे रहे ? करे का ? सजनी प्राण मेरो ॥टेक॥
कौन विनोद करत री सजनी, कवननि संग बसेरो ?
संत साधु गम आये उनके, करत जु प्रेम घणेरो ॥१॥
कहाँ निवास ? वास कहँ ? सजनी गवन तेरो ।
घट घट मांहि रहै निरन्तर, ये दादू नेरो ॥२॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें प्रश्न करके अन्तिम चरण से उत्तर दे रहे हैं । हे संत रूप सजनी ! आप कोई उस माधव के स्वरूप का मर्म कहिए भेद जानते हो क्या ? हम उसके वियोग में कैसे रहें ? हमारा प्राण अब क्या करे ?
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वह हृदय के भीतर क्या विनोद रूप खेल करते हैं ? और किस - किस के साथ उनका वास है ? क्या उनके प्रेमी मुक्तसंत और साधक, उनसे घृणा प्रेम करने वाले उनके ध्यान विचार में आए हैं ?
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हे संत रूप सहलियों ! उनका निवास कहाँ है ? और आपकी वृत्ति किसमें लगी है ? और आपका गमन कहाँ और किसमें हो रहा है ? उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर, हे संतरूप सहेली ! वह माया को अपनी आज्ञा में चलाने वाले माधव सभी के अन्तःकरण रूपी घट में निरन्तर, कहिये अन्तराय रहित, साक्षीरूप से सब जीवात्माओं के समीप ही रहते हैं ।
(क्रमशः)
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