मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

#daduji
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
= लुटेरों का मिलना = 
फिर एक दिन मार्ग में दादूजी को कुछ लुटेरों ने घेर लिया | और बोले - तुम्हारे पास जो कुछ है सो सब देदो, नहीं दोगे तो अब जीवित नहीं बचोगे | 
दादूजी ने कहा - आप लोग ऐसा काम क्यों करते हो ? इस से तो आप लोग दूसरों को महान् दुःख में डालते हो | आप लोग सोचो, आप को कोई लूटे तो आपको कितना दुःख होगा ? 
लुटेरों ने कहा - हमारी जीविका यह ही है और हमको लूटने की शक्ति है ही किस में ? 
दादूजी ने कहा - इस प्रकार तो आप लोग अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हो | 
लुटेरों ने पूछा - कैसे ? 
दादूजी ने कहा - गरीबों को भी लूट लेते हो | 
लुटेरे बोले - हम तो गरीब अमीर की परीक्षा नहीं करते, जिसके पास जो होता है वही लूट लेते हैं |
हमने तुम्हारी बातें सुन ली हैं | अब यदि तुम बचना चाहते हो तो अपनी शक्ति दिखाओ | और नहीं दिखाई तो अभी तुम को भी लूटेंगे | 
दादूजी ने कहा - हमारी शक्ति तो परमात्मा है, वे सदा हमारी रक्षा करते हैं | इतना कहते ही दादूजी उन को एक धनुषधारी वीर के रूप में भासने लगे | तब उन्होंने उस वीर पर अनन्त बाण चलाये किन्तु एक भी बाण उसके नहीं लगा | फिर उस वीर ने एक बाण एक सूखे वृक्ष के पेड़ में मारा | वह पेड़ के भीतर से बाहर जाता दिखाई दिया | फिर वह वीर अनन्तरूप में भासने लगा और सब ओर से लुटेरों को घेर लिया अर्थात् उस एक वीर से अकस्मात् एक सेना वहां प्रकट हो गई | सैनकों ने उनको ललकारा और दादूजी एक ओर खड़े दिखाई दिये तब वे दादूजी के शरण में आकर चरणों में पड़ गये और प्रार्थना करने लगे - आप हमारी रक्षा कीजिये | अब हम लूटने का काम सदा के लिये छोड़ कर आपके उपदेशानुसार ही चलेंगे | तब वह सेना जो अकस्मात् योगिराज दादूजी की रक्षार्थ भगवान् की योगमाया से प्रकट हुई थी, तत्काल अन्तर्धान हो गई | फिर दादूजी ने उन लुटेरों को निर्गुण भक्ति का उपदेश किया | 

इस घटना का परिचय जनगोपालजी ने इस प्रकार दिया है - 
त्राहि त्राहि तब करत पुकारा, बखसो स्वामी प्राण हमारा | 
तब स्वामी तिन करी सहाई, हरि की भक्ति हृदय उपजाई ||५८|| 
(विश्राम १) 
(क्रमशः)

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