सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

= १६५ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू यहु मन बरजि बावरे, घट में राखि घेरि ।
मन हस्ती माता बहै, अंकुश दे दे फेरि ॥
हस्ती छूटा मन फिरे, क्यों ही बँध्या न जाइ ।
बहुत महावत पच गये, दादू कछु न वशाइ ॥
जहाँ थैं मन उठ चलै, फेरि तहाँ ही राखि ।
तहँ दादू लै लीन कर, साध कहैं गुरु साखि ॥
थोरे थोरे हठ किये, रहेगा ल्यौ लाइ ।
जब लागा उनमनि सौं, तब मन कहीं न जाइ ॥
आड़ा दे दे राम को, दादू राखै मन ।
साखी दे सुस्थिर करै, सोई साधू जन ॥
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स्वकीय शास्त्रचिन्तन ~ @Kripa Shankar B
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*---गजेन्द्रमोक्ष का रहस्यार्थ---*
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सरोवर में ग्राह ने गजेन्द्र को पकड़ा । उसे उसके परिजन भी न छुड़ा सके । और स्वयं भी बल लगाकर हजारों वर्ष युद्ध करने के बाद भी उसे ग्राह से मुक्ति न मिली । अन्ततः भगवान् की कृपा से वह ग्राह से छूटा ।
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इसका आध्यात्मिक रहस्य यह है -
हृदयरूपी सरोवर में जीवरूपी गजेन्द्र है - "हृदि वारे अयमात्मा प्रतिष्ठितः" ।
उसमें मोहरूपी ग्राह ने इस जीवरूपी गजेन्द्र को पकड़ रखा है । इस मोहरूपी ग्राह से इसे इसके परिजन नहीं छुड़ा सकते । अनन्त वर्षों से इसकी लड़ाई मोह से चल रही है ।
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और यह जीव बार बार पराजित होता आया है । जिसका स्वरूप देहगेहासक्ति आदि विभिन्न रूपों में दिखता है । इस मोहरूपी ग्राह से केवल परमात्मा ही बचा सकता है और उसका परिज्ञान मात्र श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठा गुरु की कृपा से ही हो सकता है--
"तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्"
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गजेन्द्र को पूर्वजन्म में गुरु से लब्ध ब्रह्मविद्या का स्मरण भगवत्साक्षात्कार का कारण बना--"प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम् ।"
यही ब्रह्मविद्या या भगवदुपासना अथवा न्यासविद्या किंवा शरणागति गुरु द्वारा प्राप्त होती है । जिससे जीव ब्रह्मसाक्षात्कार करता है ।
भगवान् का दर्शन होने पर मोहरूपी ग्राह का नाश होता है और जीवरूपी गजेन्द्र की रक्षा होती है अर्थात् वह अपने सच्चिदानन्द स्वरूप में अवस्थित होता है ।
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दूसरा रहस्य यह कि गजेन्द्र जैसे भक्त का चरण ग्राह जैसे दुष्ट ने पकड़ा पर मुक्ति पहले ग्राह की हुई और बाद में गजेन्द्र की ।
इससे यह शिक्षा मिलती है कि भक्त के चरणों से सम्बद्ध जीव का उद्धार भगवान् पहले करते हैं ।
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---जय श्रीराम---
----जयतु भारतम् जयतु वैदिकी संस्कृतिः----
----@आचार्य सियारामदास नैयायिक----

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