सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

= १६४ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू मारग कठिन है, जीवित चलै न कोइ ।
सोई चलि है बापुरा, जो जीवित मृतक होइ ॥
मृतक होवै सो चलै, निरंजन की बाट ।
दादू पावै पीव को, लंघै औघट घाट ॥
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साभार : @Osho Prem Sandesh ~

व्यक्ति : मैं आत्महत्या करना चाहता हूँ

ओशो: तो पहले संन्यास ले लो. और तुम्हे आत्महत्या करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि संन्यास लेने से बढ़ कर कोई आत्महत्या नही है. और किसी को आत्महत्या क्यों करनी चाहिए ? मौत तो खुद बखुद आ रही है तुम इतनी जल्दबाजी में क्यों हो ? मौत आएगी, वो हमेशा आती है. तुम्हारे ना चाहते हुए भी वो आती है. तुम्हे उसे जाकर मिलने की ज़रुरत नहीं है, वो अपने आप आ जाती है. पर तुम अपने जीवन को बुरी तरह से याद करोगे. तुम क्रोध, या चिंता की वजह से आत्महत्या करना चाहते हो. मैं तुम्हे सही आत्महत्या सिखाऊंगा.
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एक सन्यासी बन जाओ. और मामूली आत्महत्या करने से कुछ ख़ास नहीं होने वाला है, आप तुरंत ही किसी और कोख में कहीं और पैदा हो जाओगे. कुछ बेवकूफ लोग कहीं प्यार कर रहे होंगे, याद रखो तुम फिर फंस जाओगे तुम इतनी आसानी से नहीं निकल सकते बहुत सारे बेवकूफ हैं. इस शरीर से निकलने से पहले तुम किसी और जाल में फंस जाओगे. और एक बार फिर तुम्हे स्कूल, कोलेज, युनिवर्सीटी जाना पड़ेगा - जरा उसके बारे में सोचो. उन सभी कष्ट भरे अनुभवों के बारे में सोचो वो तुम्हे आत्महत्या करने से रोकेगा.
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तुम जानते हो, भारतीय इतनी आसानी से आत्महत्या नहीं करते, क्योंकि वो जानते हैं कि वो फिर पैदा हो जायेंगे, पश्चिम में आत्महत्या और आत्महत्या करनेके नविन रास्ते खोजे जाते है; बहुत लोग आत्महत्या करते हैं, और मनोविश्लेषक कहते हैं कि बहुत कम लोग होते हैं जो ऐसा करने का नहीं सोचते हैं.
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दरअसल एक आदमी ने शोध कर के कुछ माहिती इकठ्ठठी की थी, और उसका कहना है कि - हर एक व्यक्ति अपने जीवन में कम से कम ४ बार आत्महत्या करने को सोचता है. पर ये पश्चिम की बात है, पूरब में, चूँकि लोग पुनर्जन्म के बारे में जानते हैं इसलिए कोई आत्महत्या नहीं करना चाहता है - फायदा क्या है ? तुम एक दरवाज़े से निकलते हो और किसी और दरवाजे से फिर अन्दर आ जाते हो. तुम इतनी आसानी से नहीं जा सकते.
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मैं तुम्हे असली आत्महत्या करना सिखाऊंगा, तुम हमेशा के लिए जा सकते हो. इसी का मतलब है बुद्ध बनना - हमेशा के लिए चले जाना.
तुम आत्महत्या क्यों करना चाहते हो ? शायद तुम जैसा चाहते थे जिंदगी वैसी नहीं चल रही है ? पर तुम ज़िन्दगी पर अपना तरीका, अपनी इच्छा थोपने वाले होते कौन हो ? हो सकता है तुम्हारी इच्छाएं पूरी ना हुई हों ?
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तो खुद को क्यों ख़तम करते हो अपनी इच्छाओं को ख़तम करो. हो सकता है तुम्हारी महत्वकांक्षा पूरी ना हुई हों, और तुम तनाव महसुस रहे हो. जब इंसान तनाव में होता है तो वो विनाश करना चाहता है. और तब केवल दो संभावनाएं होती हैं - या तो किसी और को मारो या खुद को. किसी और को मारना खतरनाक है, इसलिए लोग खुद को मारने का सोचने लगते हैं. लेकिन ये भी तो एक हत्या है !! तो क्यों ना ज़िन्दगी को ख़तम करने की बजाये उसे बदल दें !!!
ओशो

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