रविवार, 8 फ़रवरी 2015

= ११० =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू पलक मांहि प्रकटै सही, जे जन करैं पुकार ।
दीन दुखी तब देखकर, अति आतुर तिहिं बार ॥
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@Path of Saints(Sant Marg)
एक गृहस्थ सज्जन ने एक दिन परमहंस जी से पूछा, महाराज, प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का निवास कैसे हो सकता है ? मैं सांसारिक व्यक्ति हूं, जाने-अनजाने पाप होते रहते हैं।
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स्वामी जी ने कहा, अपने अंदर पाप ही क्यों देखते हो ? क्या गृहस्थ व्यक्तियों पर भगवान की कृपा नहीं होती ? हमारे देश में ऐसे अनेक गृहस्थ हुए हैं, जिन्होंने पारिवारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए सदाचार का जीवन बिताया और भगवान के दर्शन किए। जिसने दुर्गुणों का त्यागकर खुद को भगवान के सामने अर्पित कर दिया, वह भगवान के समान पवित्र बन गया।
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स्वामी जी ने आगे कहा, अबोध शिशु जब रो-रो कर मां-मां की रट लगाता है, तब मां दौड़ी चली आती है और बालक को गोद में उठा लेती है। वह यह नहीं देखती कि बालक गंदा तो नहीं है। भगवान तो माताओं की भी माता है। यदि सच्चे हृदय से प्रार्थना करे, तो वे दौड़े चले आते हैं। शर्त यही है कि शुद्ध हृदय से प्रार्थना करनी चाहिए। प्राणी मात्र के प्रति यदि प्रेम पनपने लगे, तो समझो कि भक्ति पथ पर बढ़ने लगे हो।

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