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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ पंचम बिन्दु ~*
*= मोरड़ा गमन =*
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जो ब्राह्मण प्रतिदिन जल का घड़ा लाता था, जिस जल से दादूजी स्नानादि क्रिया करते थे, वह जल - घट लेकर आया तब दादूजी उस से 'सत्यराम' बोले । उसने जान लिया आज स्वामीजी ने मौन खोल दिया है । भोजन का भी बंधन तोड़ दिया हो तो पूछकर भोजन ग्राम से लाकर करा जाऊं ।
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उसने कहा - प्रभो ! अब तो आपने मौन खोल दी है, भोजन भी करना ही चाहिये । आप आज्ञा दें तो मैं आपके लिये ग्राम से ले आऊं । दादूजी ने कहा - अन्न न लाकर दूध लाओ, अभी प्रभु की आज्ञा दूध की ही हुई है । फिर कुछ समय बाद रात्रि दिन में सवा सेर दूध पान करते रहे । उससे तपस्या जन्य शरीर की दुर्बलता भी मिट गई । शरीर सबल होने पर वहां विचरने का विचार किया । भक्तजनों ने ठहरने का आग्रह किया तब कहा फिर आयेंगे ।
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*= मोरड़ा गमन =*
करड़ाला से चल कर दादूजी विचरते हुये मार्ग के लोगों को दर्शन तथा उपदेश से कृतार्थ करते हुये मोरड़ा ग्राम में पधारे । उस समय मंद मंद वर्षा हो रही थी । दादूजी महाराज और उन के साथ वाले भक्त चाहते थे छाया में बैठ कर वस्त्र बचावें किंतु ग्राम वाले - आगे जाइये आगे जाइये ही कहते रहे । इस से दादूजी ग्राम के बाहर निकल आये ।
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तालाब की पाल पर एक विशाल वट का वृक्ष सूखा हुआ खड़ा था, उसकी विशाल शाखाओं की ओट में दादूजी और उनके साथ संत तथा भक्त थे खड़े हो गये । फिर दादूजी ने उपर देखा तो ज्ञात हुआ यह वृक्ष तो सूख गया है -
*बड़को सूखा देखा जब ही ।*
*मन में दया ऊपजी तब ही ।*
*हरि से करी बीनती करुणा ।*
*यह बट है प्रभु तुम्हारी शरण ॥*
(क्रमशः)

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