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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग केदार ६( गायन समय संध्या ६ से ९ बजे)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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१३६. हितोपदेश । त्रिताल ~
जागत को कदे न मूसै कोई ।
जागत जान जतन कर राखै, चोर न लागू होई ॥टेक॥
सोवत साह वस्तु नहिं पावे, चोर मूसै घर घेरा ।
आस पास पहरे को नाहीं, वस्ते कीन नबेरा ॥१॥
पीछे कहु क्या जागे होई, वस्तु हाथ तैं जाई ।
बीती रैन बहुरि नहिं आवै, तब क्या करि है भाई ॥२॥
पहले ही पहरे जे जागै, वस्तु कछू नहिं छीजे ।
दादू जुगति जान कर ऐसी, करना है सो कीजे ॥३॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें हित उपदेश कर रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! जो विवेक विचार द्वारा जागते हैं, उनके कोई भी काम आदि चोर, चोरी नहीं कर पाते ।
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वे जागते हुए दैवी सम्पत्ति...........यत्न पूर्वक हृदय में रखते हैं । उनके काम आदि चोर चोरी नहीं कर सकते । और यदि जीव रूपी साह मोह रूपी निद्रा में सोया रह, तो सार वस्तु को चोर चुरा ले जाते हैं, शऱीर के घेरा लगाकर ।
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सद्गुरु उपदेश आदि पहरा, उन अज्ञानियो के अन्तःकरण में है नहीं । चोरों ने वस्तु को खत्म कर दी है । अन्तकाल के समय तो केवल पश्चात्ताप ही करता है । यह उम्र रूपी रात्रि विषयों में बीत गई । वह फिर वापिस नहीं हो सकती ।
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जो बाल्यावस्था में ही जागते हैं ध्रुव आदि की तरह उनके सद्विचार आदि वस्तु ज्यों की त्यों रहती है । सतशास्त्रों से और सतगुरुओं के बताये हुये साधन रूपी मार्ग पर चलकर मनुष्य जन्म के कर्त्तव्यों का पालन कर जीवन को सफल बना ।
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IMPORTANCE OF VIGILANCE
In this fleeting and fragile world, only one who is vigilant can escape destruction and fulfil the purpose of this human life.
None can steal from the wakeful one.
Knowing that he is awake and protecting
his goods carefully; no thief draws near.
The sleeping master of the house
cannot keep his goods.
Thieves surround his house and plunder it.
With no one on guard nearby,
the goods are stolen.
What will you do, tell me, by getting up
after the goods are gone?
The spent night does not return.
What then will you do, my friend?
When one keeps watch at all times,
no harm befalls his goods.
Knowing this, do what must be done, says Dadu.
(English translation from ~
"Dadu~The Compassionate Mystic"
by K. N. Upadhyaya~Radha Soami Satsang Beas)
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