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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ पंचम बिन्दु ~*
*= बीठलव्यास को माला प्रदान करना =*
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फिर कुछ दिन के पश्चात् बीठलव्यास के मन में भाव उठा, ये संत दादूजी ज्ञान की बातें तो बहुत सुन्दर करते हैं, किन्तु बातों से ही क्या हो सकता है ? आज मैं दादूजी के पास जाकर प्रणाम करूं, उस समय वे यदि मुझे बढ़िया चंदन की सुंदर माला देंगे तो मैं उनको साक्षात् भगवान् स्वरूप ही मानूँगा ।
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बीठलव्यास के मन के भाव को दादूजी अपनी योग शक्ति से जान गये । फिर उस दिन जब बीठलव्यास दादूजी को प्रणाम करने आये तब दादूजी ने उनके भाव के अनुसार सुन्दर चन्दन की माला उनको प्रदान की ।
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यह देखकर बीठलव्यास को अति आश्चर्य हुआ । कारण, उन्होंने दादूजी के पास माला कभी देखी नहीं थी । फिर बीठलव्यास ने पूछा भी, भगवन् ! यह माला कहां से आई ?" दादूजी ने कहा - "भगवान् ने तुम्हारे लिए ही भेजी है । तुमने जैसी इच्छा की थी भगवान् ने वैसी ही व्यवस्था कर दी है ।"
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फिर तो बीठलव्यास के पिता गंगारामव्यास और बीठलव्यास का छोटा भाई भगवान् व्यास, ये सब दादूजी को साक्षात् भगवान् स्वरूप मानकर अनन्य भाव से सदा सेवा में तत्पर रहने लगे थे । इन सबकी ऐसी श्रद्धा देखकर इन की जाति वाले आश्चर्य करते थे ।
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एक दिन बीठलव्यास के जाति वालों ने बीठलव्यास को पूछा - "तुमको दादूजी ने ऐसा क्या धन दे दिया है, जिससे तुम उनके अनन्य भक्त बन गये हो ?"
बीठलव्यास ने उन लोगों को कहा - "मुझे संत प्रवर दादूजी महाराज ने राम - धन दिया है, जो सब प्रकार के धनों से महान् और अक्षय है । जिन वस्तुओं को सांसारिक प्राणी धन समझते हैं, वे तो परम दुःख रूप हैं ।
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अज्ञान के कारण ही भ्रांति से उनमें सुख भासता है और दादूजी की धनराशि राम - स्वरूप है, उसका नाश तो किसी प्रकार हो ही नहीं सकता, वही धन उन्होंने मुझे दिया है । आप में भी श्रद्धा भक्ति हो तो वह आपको उनके द्वारा प्राप्त हो सकता है । यह मैं सत्य कहता हूँ ।" बीठालव्यास के पिता गंगारामव्यास और बीठल के छोटे भाई भगवान् - व्यास भी श्री दादूजी के अच्छे भक्त थे ।
इति श्रीदादू चरितामृत पंचम विन्दु समाप्त ।
(क्रमशः)

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