गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

#daduji
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
=गृह त्याग और पेटलाद गमन = 
दादूजी ने कुटुम्ब के राग का बन्धन तो प्रथम अपने व्यवहार से काट ही दिया था | अर्थात् अधिक धन गरीबों आदि को लुटाने से सब कुटुम्ब के लोग दादूजी से उपराम हो ही गये थे | अतः दादूजी को घर त्यागने में कोई विशेष कठिनाई नहीं पड़ी | 
पेटलाद नगर के बाहर एक वट वृक्ष के पास बालकों का समूह खेल रहा था | दादूजी को देखकर और सब बालक तो भाग गये | किन्तु ज्ञान और माणक नामक दो बालक खड़े रहे | दादूजी के पास आने पर हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोले - भगवन् ! वट की शीतल छाया में विराजिये | दादूजी ने कहा - भाइयों ! वट की छाया से शीतलता प्राप्त नहीं होती है, तीनों तापों से सब संसार जल रहा है | त्रिताप की जलन मिटे उसकी छाया में ही बैठना चाहिये | इस पर दोनों बालकों ने जिज्ञासा करके बैठने की प्रार्थना करते हुये अपना वस्त्र आसन के रूप में बिछा दिया | दादूजी महाराज भी बालकों की श्रद्धा भक्ति देखकर विराज गये | 
= इति श्री दादूचरितामृत तृतीय बिन्दु समाप्त = 

अथ चतुर्थ बिन्दु = ज्ञान, माणक को उपदेश = 
दादूजी महाराज के विराजने पर दोनों बालक भी प्रणाम करके हाथ जोड़े सामने बैठकर बोले - भगवन् त्रिताप से कैसे बचा जाय ? दादूजी बोले - भाइयो परमात्मा के भजन द्वारा परमात्मा परब्रह्म का यथार्थ स्वरूप जानने से ही बचा जाता है | दोनों बालकों ने प्रार्थना की, आप कृपा करके भजन की पद्धति और ज्ञान के साधन बताकर हमको त्रिताप से बचाइये | फिर दादूजी ने उन दोनों को अधिकारी जानकार ज्ञानोपदेश द्वारा उनके हृदय में ज्ञान-भानु का प्रकाश प्रकट कर दिया | फिर कहा - ऐसे ज्ञान से युक्त रहोगे तो जैसे गंगा जल के प्रवाह में स्थित गजराज को वनाग्नि नहीं जला सकता, वैसे ही तुमको त्रिताप नहीं जला सकेंगे | तुम निसंग होकर रहो | फिर दादूजी पटेलाद से प्रस्थान करने लगे तब ज्ञानदास और माणकदास भी गुरुदेव दादूजी के साथ ही चलने लगे | दादूजी ने कहा - यहां ही भजन करो | किंतु उन दोनों की प्रबल इच्छा साथ चलने की ही थी | अतः वे साथ ही चल पड़े | 
(क्रमशः)

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