#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
न तहाँ चुप ना बोलणां, मैं तैं नांहीं कोइ ।
दादू आपा पर नहीं, न तहाँ एक न दोइ ॥२३॥
हे जिज्ञासुओं ! उस ब्रह्म चैतन्य के परमार्थ रूप में न तो चुप ही रहना पड़ता है, न बोलना ही बनता है; न मैं है, न तूं है; न और है; न अपना है न पराया; न वहाँ एक ही है, न वहाँ दो ही कहना बनता है । तात्पर्य यह है कि निरुपाधिक अद्वैत, सर्वसाक्षी, समष्टि चैतन्य निश्चल है । इसलिए भाव अथवा अभाव रूप से ब्रह्म का कोई भी निरूपण नहीं कर सकता है अर्थात् वह अवाच्य है ॥२३॥
न जायते म्रियते वा कदाचित् नायं भूत्वा भविता वा न भूय:।
अजो नित्य: शाश्वतोSयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीर ।
(गीता)
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एक कहूँ तो दोइ हैं, दोइ कहूँ तो एक ।
यों दादू हैरान है, ज्यों है त्यों ही देख ॥२४॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! कदाचित् हम मुक्तजन, ब्रह्म को एक कहैं तो माया और ब्रह्म दो प्रतीत होते हैं, इसलिए वक्तृत्व और वक्ताभाव से द्वैतभाव होता है और जो दो कहैं तो अनिर्वचनीय ब्रह्म एक अद्वैत है, माया और वक्ता मिथ्या रूप हैं तथा वह विचार करने से ब्रह्म की सत्ता से ही प्रतीत होते है । इस प्रकार ब्रह्म के अद्भुत स्वरूप को विचार - विचार कर हम अति हैरान हैं । इसलिए अपने सहज स्वरूप को पहचानिये ॥२४॥
छप्पय
आदि नारायण अमर, वेद भागोत सु बोलहिं ।
विविध भाँति वपु धारि, हारि जग मांहि न डोलहिं ॥
द्वै द्वै गुण सूं रहित, भले सिध साधक भाखहिं ।
पूरे पुरुष पिछान, रति मति तासूं राखहिं ॥
साचे थापहिं साच नित, रज्जब रीति विचारिये ।
परम पंथ प्राणी चलहु, रहते की रह धारिये॥
(श्री दादूवाणी ~ हैरान का अंग)
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Mooji Quotes ~
No one has ever succeeded
in conveying Truth
through words alone,
for Truth is beyond words, learning, imagination
and language.
It is unfathomable.
Words like God, Consciousness, emptiness, the Self, the great Void, the Supreme
Being inspire and evoke a contemplation,
and perhaps, herein lies their real purpose and service,
but in truth there are no words for that which alone Is.
When and where words come to an end, It - the What Is, does not begin.
It is there in the space between two thoughts, but it is also there during the appearing
of thoughts.
Contemplate this.
-Mooji
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