#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू सहजैं सहजैं होइगा, जे कुछ रचिया राम ।
काहे को कलपै मरै, दुःखी होत बेकाम ॥२॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! प्रारब्ध कर्म अनुसार धीरे - धीरे जो कुछ राम ने इस स्थूल शरीर का भोग रचा है, प्राप्ति - अप्राप्ति, सुख - दुःख आदि में संत किसी प्रकार का हर्ष - शोक नहीं करते हैं और परमेश्वर की समर्थाई में विश्वास करके कर्म - फल के निमित्त चिन्ता नहीं करते । अनुकूल और प्रतिकूल उनको एक समान हैं ॥२॥
क्यों कलपै बेकाम को, चंचल राखै चित्त ।
मिटत न लिखे ललाट के, धीर गहै क्यों न मित्त ॥
भावी लिख्या सु पाइये, बिन भावी कुछ नाहिं ।
‘जगन्नाथ’ बहु पच मरै, प्रापति भावी माहिं ॥
असन बसन तब का दिया, गर्भ पड्या जब बिंद ।
‘जगन्नाथ’ घट बढ़ नहीं, जे लिखिया गोबिन्द ॥
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सांई किया सो ह्वै रह्या, जे कुछ करै सो होइ ।
कर्ता करै सो होत है, काहे कलपै कोइ ॥३॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सृष्टि - कर्त्ता परमेश्वर ने जो कुछ कर्म - फल रचा है, वह प्राप्त हो रहा है और भविष्य में जो कुछ कर्मानुसार फल देंगे, वह होगा । कर्त्ता जीव ने जैसे कर्म किये हैं, उनका वैसा ही सुख दुःख का फल होता है । कर्मफल भोगने में अब क्यों कल्पना करते हो ? और परमेश्वर तो परम दयालु हैं, वह निरंतर ही जीव का कल्याण करते हैं अर्थात् कर्मफल भोगने में विश्वास दिलाकर अपनी शरण में रखते हैं ॥३॥
(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)
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Mooji Quotes ~
The mind always wants to do something.
It is not interested in hearing that nothing needs to be done.
And that’s not the same as saying “don’t do anything”.
Things will be done.
In fact, everything that needs to be done is already being done.
Right now, thoughts are coming in and out.
Are you doing that?
If you were doing that,
you would be able to stop those thoughts right now ! You see?
Everything just happens, and this is the last thing the mind wants to hear!
The whole thing is all spontaneous !
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