#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
यहु घट बोहित धार में, दरिया वार न पार ।
भैभीत भयानक देखकर, दादू करी पुकार ॥
कलियुग घोर अंधार है, तिसका वार न पार ।
दादू तुम बिन क्यों तिरै, समर्थ सिरजनहार ॥
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साभार : Prakash Kejriwal ~
पारस गुन अवगुन नहीं चितवै, कंचन करत खरो ।
भाव : संत सूरदास जी कहते हैं कि पारस के पास किसी भी तरह का लोहा चला जाये, चाहे वह पूजा में बरतने वाला चाकू हो, चाहे वह कसाई की छुरी हो, पारस दोनों में कोई फर्क नहीं करता, वह तो अपनी दया की दृष्टि दोनों पर डालता है, अपने स्पर्श से दोनों को खरा सोना बना देता है । वह यह नहीं देखता, कि ये लोहा किस काम आता रहा है ।
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इसी तरह हे प्रभु ! आप के कचरणों में दोषी भी आते हैं, निर्दोष भी आते हैं मगर आप तो समदर्शी होने के नाते दोनों पर दया दृष्टि करते हैं । हे प्रभु ! मैं भी पापी हूँ, मैं इस योग्य तो नहीं हूँ कि आप मुझ पर करुणा करें मगर आप अपनी दया से मुझे इस भवसागर से पार कर दीजिए ।

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