#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
प्रतिपाल
दादू जिन पहुँचाया प्राण को, उदर उर्ध्व मुख खीर ।
जठर अग्नि में राखिया, कोमल काया शरीर ॥१५॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो समर्थ परमेश्वर गर्भवास में प्राणों को पोष देता है, जहॉं यह प्राणी उल्टा झूलता है, उसी जगह इसके मुख में दूध पहुँचाता है और कोमल शरीर की जठराग्नि से रक्षा करता है । ऐसे परमेश्वर का विश्वास धारण करो । वह अब क्या अन्न - वस्त्र नहीं पूरेंगे ? इस चिंता को छोड़कर उनके निष्काम नाम - स्मरण में स्थिर रहो ॥१५॥
छप्यय
मात पिता गम नाहिं, माहिं तहॉं खीर पिवायो ।
महाघोर अँधियार जठर अग्नि हु सतायो ॥
अन्नपान भस्म होत, तहॉं बहु निसा बदीती ।
तहॉं राख्यो दस मास, जहॉं संकट भैभीता ॥
कौन कौन गुन बरनिये, जे सुख दीने जीव को ।
‘खेमदास’ निलज्ज नर, सुमिरत नहिं तिहिं पीव को ॥
दोहा ~ मात पिता का गम नहीं, तहॉं पिवायो खीर ।
सो गुण थारा रामजी, ‘बखना’ लिख्या सरीर ॥
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दादू सो साहब जनि विसरै, जिन घट दिया जीव ।
गर्भवास में राखिया, पालै पोषै पीव ॥१९॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! उस सर्व शक्तिवान् परमेश्वर को कभी भी नहीं भूलना । जिसने जीव को मनुष्य देह रूपी शरीर मोक्ष प्राप्ति का यह स्थान दिया है और गर्भवास में पालन किया है तथा पोष दिया है, उसी परमेश्वर का विश्वास करके नाम - स्मरण द्वारा इस मनुष्य जीवन को सफल बनाओं ॥१९॥
वै दिन संभाल प्राणी, पर्यो थो गर्भ घाणी,
कैसी तब बोल्यो बाणी, नांव चित्त धरै थो ।
ऊँधे तन लटकाइ, चोर जैसे हाइ हाइ,
भौत पछिताइ फेर, मालिक थैं डरै थो ॥
बीनती उचार करुणा में करुणा - निधान,
भगति करूँगो तेरी ऐसी मन करै थे ।
कहै अब ‘खेमदास’, सुन भाई बीर मन,
अब तोहि लागी बाइ, कैसें दुख भरै थो ।
(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)
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साभार : Binder Kumar ~
जीवन की राह मे चाहे कैसी भी मुश्किल आ पड़े, धैर्य नहीं खोना चाहिए। जन्म से पहले ही जिसने दूध की व्यवस्था कर दी, जो प्राणों को गति देता है, हमारे हृदय को जो धड़कनें दे रहा है, वह प्यारा प्रभु हमारे साथ है, हमारे पास है, फिर भय और चिंता के लिए स्थान ही कहाँ !
मुर्दे को प्रभु देत है, कपड़ा लकड़ी आग ।
जिंदा नर चिंता करे, ताके बड़े अभाग ॥

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