मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

*= सांभर गमन =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ पंचम बिन्दु ~*
*= सांभर गमन =*
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परम योगेश्वर दादूजी ने बीठलव्यास की अपने पास आने की तीव्र इच्छा जानकार कहा - "आप आना चाहते हैं तो 'सत्यराम' इस मंत्र का जप करते हुये जल पर से आजाइये, आप नहीं डूबेंगें । बीठलव्यास को दादूजी के वचन ऐसे ज्ञात हुये मानों पास खड़े हुये ही बोल रहे हों । बीठलव्यास ने कहा - भगवन् ! आपके पास आने का कोई और भी उपाय है क्या ?
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दादूजी ने कहा -
"ऐसा कौन अभागिया, कछु दृढ़ावे और ।
नाम बिना पग धारन को, कहो कहां है ठौर ॥"
अर्थ : - यहां ऐसा अभागा पुरुष कोई नहीं है, परमात्मा के नाम को छोड़ कर, इसके लिये अन्य उपाय बतावे । जल पर ऐसा स्थान कहां है, जिस पर प्रभु नाम के बिना पैर रखकर तैर सके ।
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फिर दादूजी के वचन पर तथा परमात्मा के नाम पर दृढ़ विश्वास करके बीठलव्यास जल पर स्थल के समान चल कर छत्री पर पहुँच गये और प्रणाम करके पूछा - आप कहां से पधारे हैं ?
दादूजी ने कहा - "मैं अहमदाबाद से विचरता हुआ अनेक स्थानों में निवास करके यहां पहुँचा हूँ ।
बीठलव्यास - आप यहां क्यों आये ? यहां तो हमारे को शंख झालर बजाने की भी स्वतन्त्रता नहीं है । फिर यहां आपका साधन निर्विघ्न कैसे चल सकेगा । दादूजी ने कहा - भगवान् चलायेंगे, वैसे ही चलेगा ।
(क्रमशः)

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