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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ पंचम बिन्दु ~*
*= माधवानन्दजी का पत्र और उसका उत्तर =*
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संत की उक्त सब बातें सुनकर माधवानन्दजी दादूजी को एक पत्र लिखकर अपने एक शिष्य के हाथ दादूजी के पास भेजा । उस पत्र का मुख्य विषय यह था - "आचार धर्म राखो सदा, तुमरा बढे प्रताप ।" माधवानन्दजी के शिष्य ने मोरड़ा ग्राम आकर वह पत्र दादूजी को दिया ।
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दादूजी ने उस पत्र को पढ़ा और उसके उत्तर में एक पत्र लिखवाकर माधवानन्दजी के शिष्य को देकर कहा - यह पत्र आप अपने गुरुजी को दे देना । आप जो पत्र लाये थे उसका उत्तर इसमें लिख दिया है । उस पत्र में दादूजी ने लिखाया था -
"देह जतन कर राखिये, मन राखा नहिं जाय ।
उत्तम मध्यम वासना, भला बुरा सब खाय ॥१॥
दादू हाडों मुख भरा, चाम रहा लपटाय ।
मांहीं जिह्वा मांस की, ताहि सेती खाय ॥२॥
नवों द्वारे नरक के, निशि दिन बह बलाय ।
शुच्च कहां लों कीजिये, राम सुमर गुण गाय ॥३॥
प्राणी तन मन मिल रहा, इन्द्रिय सकल विकार ।
दादू ब्रह्मा शूद्र घर, कहां रहे आचार ॥४॥"
वह पत्र ले जाकर उस शिष्य ने अपने गुरु माधवानन्दजी को दिया तब उक्त साखियां पत्र में पढ़कर माधवानन्दजी ने मान लिया और पत्र लिखकर पुनः शिष्य के हाथ दादूजी पास मोरड़ा ग्राम को भेजा ।
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उस पत्र में स्वामी माधवानन्दजी ने लिखा था - "भगवन् ! आपकी विचारधारा अति प्रौढ़ है । आपके उत्तर से मुझे अति प्रसन्नता हुई है । मैंने एक साधु के कहने से आपको पूर्व पत्र लिखा था किन्तु आपका पत्र पढ़कर मुझे पूर्ण संतोष हुआ है । उच्चकोटि के संत बाह्य आचार पद्धति में कम ही आरूढ़ रहते हैं । आप जैसे संत तो अन्तः साधना में तल्लीन रहते हैं । पूर्व पत्र की धृष्टता के लिये क्षमा चाहता हूँ । शेष भगवत् कृपा ।
(क्रमशः)

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