बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

#daduji
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
= दादूजी का करड़ाले जाना = 
इधर दादूजी भी आबू पर्वत से प्रस्थान करके भक्तों के आग्रह से सिरोही, पाली, पीपाड़, अजमेर, पुष्कर, मेड़ता आदि नगरों में विचरते हुये शनेः २ कुचामण रोड़ (नावाँ) से दक्षिण की ओर लगभग १२ मील तथा पर्वतसर से चार मील उत्तर की ओर कल्याणपुर(करडाला) पधारे और वहां के पर्वत को ही अपनी साधना का स्थान निश्चय किया | पर्वत की नीचाई में पास ही ग्राम बस्ता था | पर्वत के मध्य भाग में एक विशाल ककेड़े का वृक्ष था | उसकी शाखायें इस प्रकार नीचे झुकी हुई थी कि उसके नीचे का भाग गुफा सा बन रहा था | उसके नीचे बैठने पर दृष्टि दूर नहीं जा सकती थी और उसके नीचे बैठा व्यक्ति भी पूर्ण ध्यान से देखने पर ही बाहर खड़े दूर के व्यक्ति को दीखता था | अतः उसके नीचे दादूजी ने अपनी तपस्या आरंभ कर दी | वह एकांत स्थान तो था ही | ध्यान में विघ्न का प्रसंग वहां नहीं आता था | इससे अधिक समय उसके नीचे ही आप ध्यानस्थ रहते थे | करडाला ग्राम की जनता दादूजी को पूर्ण संतोष की मूर्ति ही समझती थी और स्वतः ही अपने से होने वाली सेवायें करती रहती थी | अब उस ककेड़े के स्थान पर एक कुटिया और एक छत्री बनी हुई है | वहां जाकर भक्त लोग दंडवत प्रणाम करते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं और अपनी २ भावना के अनुसार लाभ उठाते हैं | वह स्थान ही दादूजी की प्रथम तपोभूमि है |
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें