#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
मन चित चातक ज्यों रटै,
पीव पीव लागी प्यास ।
दादू दर्शन कारणै, पुरवहु मेरी आस ॥
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@Osho Prem Sandesh via @Aakash A. Jain
आखिरी सवाल: दादू ने दादू होने के बाद कहा है, पिव पिव लागी प्यास ? क्या दादू ने दादू होने के पहले भी कहा था, पिव-पिव लागी प्यास ?
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दादू दादू ही न होते, अगर पहले न कहा होता। "पिव पिव लागी प्यास'--यही रटन तो दादू को दादू बना दी। इसी रटन ने, इसी प्यास ने, तो इसी पुकार ने तो परमात्मा तक पहुंचाया। दादू तो पहले ही कहे हैं, तभी दादू बने हैं। अगर पहले न कहा होता, तो दादू का जन्म ही न होता। वह तो हमने पीछे सुना है, जब दादू दादू हो गए।
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इसे थोड़ा समझ लेना। दादू ने तो पहले ही कहा है, हमने पीछे सुना है। दादू ने तो प्यास का जीवन ही जीया है, तभी तो तृप्ति का क्षण आया। रोए, तभी संतुष्टि। लेकिन हमें तब नहीं सुनाई पड़ा, जब दादू रो रहे थे। वह रोना तो उनका निजी था, एकांत में था। वह तो उनका अपना था। हमने तो तभी सुना, जब दादू हो गए; जब उनका प्रकाश-स्तंभ प्रगट हुआ।
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मैं तुमसे जो कह रहा हूं, वह मैंने अपने होने के बहुत पहले बहुत बार अपने से कहा है। उस दिन तुमसे नहीं कहा था, उस दिन तुम सुनते भी नहीं। आज भी तुम सुन लो, तो बहुत है। उस दिन तो तुम सुनते ही कैसे ! पर मैंने बहुत बार उसे अपने से कहा है, तभी वह घड़ी आई, जहां जागरण हुआ। और अब मैं तुमसे कह सकता हूं।
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बढ़ने दो रटन को, प्यास को, सागर दूर नहीं है। बस, प्यास की कमी ही एकमात्र दूरी है। उतरने दो तुम्हारे हृदय में भी इस रटन को--"पिव पिव लागी प्यास--' और मंजिल दूर नहीं है। मंजिल बिलकुल आंख के सामने है। थोड़ी सी आंख खोलनी है। थोड़ी सी आंख खोलकर देखनी है। फासला नहीं है, कि यात्रा करनी हो। तुम तीर्थ में ही खड़े हो, मगर शराब पीए खड़े हो।
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मैंने सुना है, एक शराबी एक रात अपने घर आया। ज्यादा पी गया था। पहचान में नहीं आता था, अपना घर कौन सा है? पुराने अभ्यासवश पहुंच तो गया, पैर चलाकर ले गए, लेकिन द्वार पर खड़े होकर सोचने लगा यह घर मेरा! समझ में नहीं आता कभी देखा हो। दरवाजा पीटने लगा। उसकी मां बाहर निकलकर आ गई। उसने उस मां के पैर पकड़ लिए और कहा, कि ऐसा कर; मुझे मेरे घर पहुंचा दे। मेरी बूढ़ी मां मेरी राह देखती होगी।
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पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए। लोग हंसने लगे। लोग हैरान हुए। लोग उसे समझाने लगे, यही तेरा घर है। जितना लोग समझाने लगे उतना ही वह शराबी जिद करने लगा, कि अगर यह मेरा ही घर होता, तो किसी को समझाने की जरूरत ही क्या थी? मैं खुद ही समझ लेता। क्या मुझे अपना घर पता नहीं? क्या तुमने मुझे इतना मूढ़ समझा है? मैं पागल हूं?
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एक दूसरा शराबी जो यह सब बात सुन रहा था, वह बैलगाड़ी जौतकर आ गया। और उसने कहा, तू बैठ; मैं तुझे तेरे घर ले चलता हूं। उसकी मां ने उसके पैर पकड़ लिए कि तू इसकी गाड़ी में मत बैठ, अन्यथा घर से बहुत दूर निकल जाएगा। और यह भी पीए है। मगर कौन सुने !
तुम घर के सामने ही खड़े हो। इसलिए जो गुरु तुमसे कहते हों, बैठो हमारी गाड़ी में, हम तुम्हें तीर्थयात्रा पर ले चलते हैं, जरा सम्हलकर बैठना। घर से दूर निकल जाओगे। वे भी पीए बैठे हैं।
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मैं तुम्हें किसी यात्रा पर नहीं ले जा रहा हूं। मैं तुमसे यह कह रहा हूं, तुम जागकर देखो। तुम जहां खड़े हो, वह तुम्हारा घर है। यह अस्तित्व तुम्हारा घर है। चारों तरफ परमात्मा ने तुम्हें घेरा है। उसके अतिरिक्त और तुम्हें कोई भी घेरे हुए नहीं है। उसी की हवाएं हैं, उसी का आकाश है, उसी की पृथ्वी है, उसी के तुम हो। सब उसी का खेल है।
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लेकिन प्यास जगे, तो उसी प्यास में से दर्द, पीड़ा उठेगी। उसी पीड़ा में से होश आएगा। उसी होश में से सुरति जागेगी। गूंजने दो तुम्हारे हृदय में यह धुन-- "पिव पिव लागी प्यास!' - "ओशो शरनम् गच्छामि"....
Piv Piv Lagi Pyas - 10

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