सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

= १६३ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू तृषा बिना तन प्रीति न ऊपजै,
सीतल निकट जल धरिया ।
जन्म लगै जीव पुणग न पीवै,
निरमल दह दिस भरिया ॥
दादू क्षुधा बिना तन प्रीति न ऊपजै, बहु विधि भोजन नेरा ।
जनम लगैं जीव रती न चाखै, पाक पूरि बहु तेरा ॥
दादू तप्त बिना तन प्रीति न ऊपजै, संग ही शीतल छाया ।
जनम लगै जीव जाणैं नाही, तरवर त्रिभुवन राया ॥
दादू चोट बिना तन प्रीति न ऊपजै, औषध अंग रहंत ।
जनम लगै जीव पलक न परसै, बूंटी अमर अनंत ॥
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साभार : @Swami Shoonyanand ~ प्यास का महत्व
"प्यास नहीं है तो सामने बहती नदी का पानी भी व्यर्थ है और जिसमे प्यास है वो झुककर नदी का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा ही लेता है,जो अहंकार से भरा है वो अतृप्त ही रह जाता है।
वैसी ही परमात्मा की गहन प्यास ही तुम्हें परमात्मा तक ले जा सकती है, गहन प्यास है तो सदगुरु भी प्रकट हो जाता है।
ईजिप्ट मे एक लोकोक्ति है कि "जब शिष्य तेयार होता है तो गुरु प्रकट हो जाता है"।
सत्संग केवल आपकी प्यास जगाने के लिए है। - स्वामी शून्यानन्द
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Importance of Thirst
"If there is no thirst then water of the river flowing in front of you is in vain one who has thirst turn down and drink the water and satisfied but egoist people remain always unsatisfied.
The intense thirst for God can only take you to the divine, if intense thirst is there the master appears.
In Egypt there is a proverb,"When the Disciple is prepared the Master appears."
Satsang is meant only to awaken your thirst."-
@Swami Shoonyanand

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