शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग ~ ४


॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग* 
*देखहु रांम अदेख हु रांम हि,*
*लेख हु रांम अलेख हु रांमै ।*
*एक हु रांम अनेक हु रांम हि,*
*शेषहु रांम अशेष हु तांमै ॥*
*मौंन हू राम अमौंन हु रांम हि,*
*गौंन हु रामं हि भौंन हु ठांमै ।*
*बाहिर रांम हि भीतर रांम हि,*
*सुन्दर रांम हि है जग जामै ॥४॥*
दृश्य या अदृश्य विषय में, लक्ष्य या अलक्ष्य विषय में, 
एक या अनेक के विषय में शेष या अशेष में सर्वत्र राम ही विराजमान है । 
वह मौन हो या बोल रहा हो, चल रहा हो या बैठा हो, सर्वत्र राम को ही विद्यमान समझता है । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - इस समस्त जगत् में एकमात्र सर्वव्यापक प्रभु परमात्मा ही राम नाम से विराजमान है ॥४॥ 
(क्रमशः)

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