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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ पंचम बिन्दु ~*
*= सांभर गमन =*
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बीठलव्यास ने पूछा - आपका यहां निर्वाह कैसे होता है ?
दादूजी बोले -
"पूर रह्या परमेश्वर मेरा,
अणमाँग्या देवे बहु तेरा ॥टेक॥
सिरजन हार सहज में देय,
काहे धाय माँग जन लेय ॥१॥
विश्वंभर सब जग को पूरे,
उदर काज नर काहे झूरे ॥२॥
पूरक पूरा है गोपाल,
सबकी चित्त करै दर हाल ॥३॥
समर्थ सोई है जगनाथ,
दादू देखि रहै संग साथ ॥४॥
यह पद सुनाकर ईश्वर सम्बन्धी अन्य विचार तथा दृष्टांत भी सुनाये । फिर बीठलव्यास के समझ में आ गई । भगवान् सबका पालन करता है । पत्थर में रहने वाले शकर खोरे कीट को पत्थर के मध्य जहां पहुँचाने का कोई मार्ग नहीं दिखाई देता, वहां भी विश्वंभर उसको शकर देता है ।
फिर दादूजी ने बीठलव्यास को ईश्वर नाम महिमा सम्बन्धी स्मरण के अंग की अनेक साखियां सुनाकर नाम चिन्तन करना रूप साधन दृढ़ करा दिया । पश्चात् बीठलव्यास ने कहा - स्वामीजी ! नगर में मेरे मन्दिर में पधारिये । वहां एकांत भी है तथा आपकी सर्व प्रकार की सेवा भी हम लोगों से हो सकेगी । और साँभर की जनता को भी आपके दर्शन सत्संग का लाभ होगा । यहा सेवा भी नहीं बन सकती है । अतः आप कृपा करें ।
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*= बीठलव्यास के मंदिर में जाना =*
दादूजी ने कहा - जैसी हरि की आज्ञा होगी वैसा ही होगा । मैं तो प्रभु की आज्ञानुसार ही सब कुछ करता हूँ । फिर दादूजी के हृदयाकाश में परमेश्वर ने प्रेरणा की - "तुम बीठलव्यास के साथ जाओ और नगर के लोगों को उपदेश द्वारा सन्मार्ग में तथा निर्गुण भक्ति में लगाओ । तब हरि की आज्ञा मान कर दादूजी बीठलव्यास के मन्दिर में पधार गये । वह मंदिर भगवान् रामचन्द्रजी का था । बीठलव्यास मूर्ती पूजा करते थे और दादूजी निर्गुण भक्ति में सलंग्न रहते थे ।
(क्रमशः)

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