बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग ~ २


॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग* 
*श्रोत्रहु रांमहि नेत्रहु नेत्रहु रांमहि,*
*वक्त्र हु रांम हि रांम हि गाजै ।*
*शीशहु रांम हि हाथहु रांमहि,*
*पांव हु रांमहि रांम हि साजै ॥*
*पेट हु रांम हि पीठ हु रांम हि,*
*रांम हु रांम हि रांम हि गाजै ।*
*अन्तर रांम निरन्तर रांम हि,*
*सुन्दर रांम हि रांम बिराजै ॥२॥*
जिसने अपनी साधना को इतना आगे बढ़ लिया है कि उसके कान, आँख, मुख से निरन्तर राम का नाम ही गूँजता रहता है । 
शिर, हाथ एवं पैर भी राम नाम की और ही आकृष्ट रहते हैं । 
उसके पेट, पीठ एवं रोम रोम से रामधुन ही निकलती सुनायी देती है । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - उसके मन में किसी प्रकार का व्यवधान या अव्यवधान होने पर भी सदा राम का नाम ही सम्मुख रहता है ॥२॥
(क्रमशः)

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