#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू सतगुरु अंजन बाहिकर,
नैन पटल सब खोले ।
बहरे कानों सुणने लागे, गूंगे मुख सौं बोले ॥
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साभार : Gautam Chauhan ~
< शिष्य धर्म >
जो गुरु के पास दास की तरह रहता हो, और हमेशा हनुमान की तरह आज्ञा पालन करने को तत्पर हो, वही वास्तविक शिष्य है । जो वास्तव मेँ शिष्य बन गया, वह गुरु से कभी दूर नहीँ हो सकता, जिस प्रकार परछाईँ कभी वस्तु से दूर नहीँ हो सकती; उसी प्रकार शिष्य भी गुरु के सदैव करीब बना रहता है । शिष्य के लिए गुरु ही सर्वस्व है ।
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गुरु ही उसके लिए माता - पिता, एवं सच्चा मित्र हो सकता है । वास्तविक शिष्य के लिए संसार के सारे सम्बन्ध नगण्य हो जाते हैँ, क्योँकि वह पूर्णतः गुरु मेँ समाहित हो जाता है । शिष्य के लिए गुरु से बढकर कोई वेद, शास्र या ग्रंथ नहीँ है, गुरु से बढकर कोई देव या इष्ट नहीँ है, गुरु ही उसके लिए सर्वस्व है ।
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एक शिष्य के लिए गुरु-चरणोँ के अतिरिक्त कोई मंदिर या तीर्थ नहीँ, वह गुरु चरणोँ मेँ ही समस्त देवी देवताओँ एवं तीर्थ का दर्शन कर लेता है । अधिक से अधिक गुरु-सेवा करने की अदम्य इच्छा शिष्य मेँ होनी चाहिए । गुरु सेवा ही समस्त साधनाओँ एवं सिद्धियों की कुंजी है ।

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