गुरुवार, 5 मार्च 2015

= २५ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
शरीर सरोवर राम जल, माहीं संजम सार ।
दादू सहजैं सब गए, मन के मैल विकार ॥
दादू रामनाम जलं कृत्वां, स्नानं सदा जित: ।
तन मन आत्म निर्मलं, पंच-भू पापं गत: ॥
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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साभार : Tanuja Thakur ~
अद्भिर्गात्राणि शुद्धयन्ति मन: सत्येन शुद्धयन्ति ।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा बुद्धि ज्ञानेन शुद्धयति ॥
- मनुस्मृति
अर्थ : मानव काया जल से शुद्ध होती है, मन सच बोलने से, जीवात्मा(सूक्ष्म देह) विद्या से और तप से और बुद्धि ज्ञान से शुद्ध होती है ।
भावार्थ : आज की पीढी को हम मात्र तन की शुद्धि सिखाते हैं इसलिए वे दिशाभ्रमित हो रही है । वस्तुत: मानव शरीर के चार भाग हैं – स्थूल देह जिसे हम देख सकते हैं, मन, बुद्धि और अहं । खरे अर्थों में मन, बुद्धि और अहं की शुद्धि से ही मानव में देवत्व आता है !
मन की शुद्धि से मन की स्थिरता बढती है । आज तो वैज्ञानिक भी कहने लगे हैं कि मनुष्य के अधिकांश रोग साइकोसोमेटिक(psychosomatic) हैं अर्थात अशांत मन के कारण शरीर का अस्वस्थ रहना; परंतु हमारी शिक्षण पद्धति में कहीं भी मन का निग्रह करना नहीं सिखाया जाता है; अतः आज चारों ओर भ्रष्टाचार, व्यभिचार और अनाचार व्याप्त है, यह सब मन की अशुद्धि का स्थूल प्रकटीकरण है और कुछ भी नहीं ।

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