बुधवार, 4 मार्च 2015

सजनी ! रजनी घटती जाइ ।

卐 सत्यराम सा 卐
सजनी ! रजनी घटती जाइ ।
पल पल छीजै अवधि दिन आवै, अपनो लाल मनाइ ॥ टेक ॥
अति गति नींद कहा सुख सोवै, यहु अवसर चलि जाइ ।
यहु तन विछुरैं बहुरि कहँ पावै, पीछे ही पछिताइ ॥ १ ॥
प्राण-पति जागे सुन्दरि क्यों सोवे, उठ आतुर गहि पाइ ।
कोमल वचन करुणा कर आगे, नख शिख रहु लपटाइ ॥ २ ॥
सखी सुहाग सेज सुख पावै, प्रीतम प्रेम बढ़ाइ ।
दादू भाग बड़े पीव पावै, सकल शिरोमणि राइ ॥ ३ ॥

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