#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू निंदक बपुरा जनि मरै, पर उपकारी सोइ ।
हम को करता ऊजला, आपण मैला होइ ॥
दादू निन्दक बुरा न कहिये,
पर उपकारी अस कहॉं लहिये ।
ज्यों ज्यों निन्दैं लोग विचारा,
त्यों त्यों छीजै रोग हमारा ॥
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साभार ~ बिष्णु देव चंद्रवंशी
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सचमुच विपत्ति में ही मनुष्य के धैर्य और धर्म का पता लगता है; परन्तु यह विश्वास रखिये, जिनका जीवन केवल आराम से ही बीतता है उनके लिए जीवन में पूर्ण विकास और पूर्ण परिणति बहुत कठिन हो जाती है l वे न तो अपने को भलीभांति परख - पहचान सकते हैं और न दूसरे की यथार्थ स्थिति का ही अनुभव कर सकते हैं l
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इसी से बुद्धिमान लोग विपत्ति से घबराते नहीं l वे जानते हैं कि जो लोग 'हाँ हजूर' कहनेवाले खुशामदियों और तारीफ के पुल बांधनेवाले स्वार्थियों से घिरे रहकर इन्द्रिय सुखभोग के आराम में लगे रहते हैं, वे भगवत्कृपा के परम लाभ से प्राय: वंचित ही रहते हैं l विपत्ति में धीरज न छोड़कर उसे भगवान् के दें मानकर सम्पत्ति के रूप में परिणत कर लेना चाहिए l फिर विपत्ति का दुःख मिटते देर न लगेगी l
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यही बात निन्दा करने वाले भाइयों के सम्बन्ध में समझिये l आप यह माने कि आपकी जितनी भी निन्दा होती है, उतने ही आपके पातक घुलते हैं l निन्दा करनेवाले तो बिना पैसे के धोबी हैं, हमारे अन्दर जरा भी मैल नहीं रहने देना चाहते l हमारे पाप धोने जाकर जो स्वाभाविक ही हमारे पाप का हिस्सा लेने को तैयार हैं, वे क्या हमारे कम उपकारी हैं ? एक तरह से उनका यह त्याग है l आपकी निन्दा होती है, यह वस्तुत: बहुत अच्छा होता है l
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आप तो भाग्यवान हैं, जो आप को इतने निन्दा करनेवाले मिल जाते हैं l निन्दकों से कभी न तो द्वेष करना चाहिए, न उन्हें रोकना चाहिए और न मन में बदला लेने कि ही कोई भावना करनी चाहिए l हाँ, उनके बतलाये हुए दोषों पर धीरज तथा शान्ति के साथ विचार करना चाहिए और उनमें से एक भी दोष जान पड़े तो उसे दृढ़ता और साहस के साथ दूर करके मन-ही-मन निन्दकों का उपकार मानना चाहिए l
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भगवान् और धर्म का दृढ सहारा पकडे रखकर साहस तथा धैर्य के साथ विपत्ति का सामना करना चाहिए l भगवान् ने कहा है - (गीता १८ / ५८)
'मुझ में चित्त लगाने पर तू मेरी कृपा से सारे संकटों से पार हो जायेगा l ' भगवान् के इन वचनों पर विश्वास करके उनमें चित्त लगाना चाहिए l

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