मंगलवार, 3 मार्च 2015

#daduji 
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
= निषेधाज्ञा पत्र के अंक बदलना =
निषेधाज्ञा के पश्चात् सर्व साधारण का दादूजी के पास जाना रुक गया--
"सब ही सुन दर्शन से रहिया, 
भाव धारि दो दर्शन गहिया ||"(जनगोपाल) 
किन्तु दो श्रीमान् वैश्य सज्जनों के दादूजी के दर्शन करके ही भोजन करने का नियम था | वे दोनों भावूक भक्त दादूजी के दर्शन करने दादूजी के पास गये | दादूजी ने उनको देखकर कहा--तुम लोगों ने निषेधाज्ञा नहीं सुनी क्या ? उन लोगों ने कहा--सुनी है | दादूजी ने कहा--फिर यहां क्यों आये, नहीं आना चाहिये था | व्यर्थ दंड का पांच, पांच सौ आप लोगों को देना पड़ेगा | यहां न आकर वही हजार रुपये किसी पुण्य कार्य में लगाना था | फिर भी आप लोग दंड उस निषेधाज्ञा पत्र को भली प्रकार पढ़कर ही देना, ऐसे नहीं दे देना | उन दोनों सज्जनों में से एक नाम माधव था | वह दादूजी के उक्त वचन सुनकर बोला--
"सत्य वचन कह माधव बोला | प्रभु पापिन का झूंठा रोला ||" 
माधव ने कहा--आप का कहना तो सत्य है, हम निषेधाज्ञा पत्र पढ़कर के ही दंड देंगे | किन्तु हमें दंड देना भी पड़े तो भी वे दंड के पांच पांच सौ हम व्यर्थ नहीं समझेंगे | पाँच सौ रूपये में आपके दर्शन और वचनामृत मिले यह तो हमारे लिये सौभाग्य की ही बात है| आपके दर्शन तथा वचन इतने सस्ते कहां पड़े हैं ? पांच सौ तो हमें फिर मिल जायेंगे किन्तु आप तो संत हैं | कल विचर जायें तो फिर आपके दर्शन तथा वचनामृत कहां प्राप्त होंगे | अन्य पुण्य कार्य तो हम फिर भी करते ही रहेंगे | आपकी कृपा से भगवान् ने लक्ष्मी बहुत दी है | अतः हमारे पास जब तक पैसा है तब तक दंड देंगे और आपके दर्शन तथा सत्संग का लाभ लेंगे ही | 
दूसरी बात यह है, यह हल्ला कुछ ईर्ष्यालु स्वार्थी पंडितों ने और काजियों ने उठाया है | उन लोगों ने आपके विरुद्ध प्रचार करके जनता के हरि विमुख मनुष्यों को साथ लिया है और सरकार से मिले हैं, यहां की सरकार भी मुसलमान होने से हिन्दू संतों की महिमा नहीं सुनना चाहती है | सरकारी अफसर सिकदार को भी उक्त लोगों ने अपने साथ मिलाया है | यह सब षड्यंत्र भी उनका चलना कठिन ही है | अतः हमको आपकी कृपा से कुछ भी हानि होने वाली नहीं है | 
(क्रमशः)

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