सोमवार, 30 मार्च 2015

= ८२ =

daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू जीवित मृतक होइ कर, मारग मांही आव ।
पहली शीश उतार कर, पीछे धरिये पांव ॥
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साभार : @सनातन धर्म एक ही धर्म ~
माई री मैं तो लियो गोबिन्दो मोल।
कोई कहै छाने कोई कहै चौड़े लियो री वजंता ढोल।
कोई कहै मुंहगो कोई कहै सुंहगो लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो कोई कहै गोरो, लियो री अमोलिक मोल।
अपने सारे प्राणों को उसके चरणों में समर्पित कर देना। और निश्चित ही अभी उसका हमें पता नहीं है। इसलिए जो व्यक्ति अज्ञात के प्रति समर्पण कर सकता है, वही उसे पा सकता है। मिल जाए परमात्मा फिर तो समर्पण करना बहुत आसान है। लेकिन अड़चन यही है कि मिलता तब है, जब समर्पण हो जाए। तो समर्पण तो जुआरी ही कर सकते हैं। जिन्हें लाभ इत्यादि की चिंता है, जो हिसाब-किताब कर रहे हैं--भक्ति का मार्ग उनके लिए नहीं। यह तो हिम्मतवर दुस्साहसियों का मार्ग है।

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