daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू सबै दिशा सो सारिखा, सबै दिशा मुख बैन ।
सबै दिशा श्रवणहुँ सुने, सबै दिशा कर नैन ॥
सबै दिसा पग सीस हैं, सबै दिसा मन चैन ।
सबै दिसा सन्मुख रहै, सबै दिसा अंग ऐन ॥
===================
साभार : @NP Pathak ~
+++//स्वाध्याय//+++
*हम से ईश्वर की दूरी ?....अंतर ? फासला ? कितना है ?*
**************************************
श्लोक...
सहस्त्रशीर्षा पुरुष:सहस्राक्ष:सहस्रपात् |
स भूमि सर्वत: स्पृत्वा Sत्यतिष्ठद्द्शाङ्गुलम ||
आशय.....
ये जो परमात्मा है, हजारों सिरों वाला हे, हजारों आंखों वाला है, हजारों इसके पैर है। सा भूमिम विश्वतो वृत्व यह पूरे विष्व में फैला हुआ है, कण कण में फैला हुआ है, लेकिन केवल १० अंगुल उपर के स्थानो में रहता है आप में और उनमे सिर्फ १० अंगुली का अंतर मात्र है, आपके अंगुली से १० अंगुली मात्र।
.
निर्गुण ब्रह्म के बाहर तो कुछ है ही नहीं। सब कुछ उसी के अंदर है। कुछ भी ऐसा नहीं जो उसके बाहर संभव हो। सकता हो। वो जो कुछ भी बनता है जो कुछ भी विगड़ता है, जो संसार, जो दृष्यमान जगत का बुलबुला उसके अंदर पैदा होता है। उसी के अंदर फट जाता है, जो किसी और जगत का निर्माण होता है वो किसी और जगह फट जाता है।
.
ऐसे हजारों अनगिनत दृष्यमान जगत के अंदर बुलबुले के रूप् में बनते हैं, फटते चले जाते हैं, तरंगों के रूप में बनते हैं और किसी समंदर में विलीन हो जाते हे। चुकि मन उसका है, तो उसके अंदर होने वाले सारे घटनाओं की जानकारी उसे है| वह हर बुलबुले के बारे में जानता है, वो हर बुलबुले के बारे में देखता है कि उसके बाहर कुछ नहीं है|
.
उस सगुण ब्रह्म के परे कुछ संभव नहीं है इसलिए उसके अंदर देखने के लिए आपको विभिन्न प्रकार के हाथ की आवश्यकता नहीं हैं, आंखे जो कोटरे में फिट हैं, वह भी नहीं चाहिये| जो दो बाहर निकले हुए कान हैं, उनकी भी जरूरत नहीं हैं| दो बाहर निकले हुए हाथ ओर पैर नहीं चाहिए। अपने चलने के लिए लेकिन मन उसके हजारों हजार आंखे है, जो हर बुलबुले को देखती है|
.
उसके हजारों हजार कान है जो हर आवाज को सुनते हैं, हजारों हजार होंठ है, मुख है, जो हजारों हजार आवाज से लगातार ओमकार की ध्वनि प्रतिपादित करते हैं, हजारों पैर है जिससे हजारों किलोमीटर केवल चंद पलको के अंदर एक स्थान से दूसरे स्थान तक तय कर लेता है। क्योंकि चलना तो उसके अंदर है बाहर तो कोई गति थोड़े न है, उसके बाहर कुछ है ही नहीं|
.
वह देश -काल परिस्थिति से बंधा हुआ नहीं है, इसलिए वो “सहस्रशीर्ष पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपत सा भूमिम विश्वतो वृत्व त्यतिष्ठद्दसन्गुलम्” कहा गया है।
अब वह ऐसा निर्गुण ब्रह्म कहां प्राप्त होगा ? कैसे मिलेगा ? कैसे प्राप्त होगा ? तो ऋषिगण कहते हें, चिंतक गण कहते हैं कि आपके संसार में आपके दृष्यमान जगत के सिर्फ १० अंगुल उपर है|
.
सिद्ध योगी कहते हें इस महाकाष और घटाकाष में कोई फर्क नहीं है, जहां तुम्हारे मन का दायरा प्रारंभ होता है, उस दायरे से १० अंगुल उपर ले जाओ जहां पर सहस्रार है, उस सहस्रार पर ही आपके परमात्मा परमब्रह्म की स्थिति है| इसके बीच में सारे सगुण ब्रह्म और र्निगुण ब्रह्म के बीच की दरियां है| निर्गण ब्रह्म के र्निविकल्प ब्रह्म की अवस्था को प्राप्त करना है, तो हे मानव, तुझे इस मन के परे जाना होगा|
.
मन की स्थिति क्या है, आपके दोनों भोंहों के बीच में पियुष ग्रंथि है, आज्ञाचक्र के पास कुटस्थ है| इस कुटस्थ के १० अंगुल उपर अर्थात पीनियल गलैंड के पास सहस्रार की स्थिति है| ब्रह्मरंध्र के पास सहस्रार की अवस्था है, जो आपके आज्ञाचक्र से १० अंगुल उपर है| आपके अंगुली से १० अंगुली उपर दूसरे के अंगुली से नहीं| ठीक आपके अंगुली से १० अंगुली उपर| सहस्रार के परमब्रह्म की अवस्था है| जहां पर आप, उसे प्राप्त कर सकते हैं|
.
यह परमात्मा हजार आंखों से, हजारों पैरों से हजारों इंद्रियों से हजारो-हजार सिरों से, आपके संसार को, दृष्यमान जगत को और ऐसे अनगिनत दृष्यमान जगतों को हर सेकेण्ड देखते हें| इसकी हर गतिविधि को देख रहा है। तुम्हें खुश होना चाहिए कि तुम्हारा पिता तुम्हारे साथ है, सदैव रहेगा। हर समय रहेगा, हर सेकण्ड में हैं|
.
इसमें डरने की क्या बात है, भय की क्या बात है, तुम कोई चोर थोड़े न हो, तुम कोई शराबी थोड़े न हो, तुम कोई जुआरी थोड़े न हो। तुम कोई वेश्यागामी थोड़े न हो, जो अपने पिता के डर से भागना चाहोगे। तुम तो छल रहित कपट रहित उस परमपिता की संतान हो, जो हर समय हर क्षण तुम्हारे साथ, तुम्हारे पास है, याद रखना तुम्हारी स्थिति, तुम्हारी उपस्तिथि, और तुम्हारी परिस्तिथि यह सब परम पिता की उपस्थिति को व्यक्त करती है| तुम्हारा होना ही यह दर्शाता है कि वह तुम्हारे साथ में है|
.
तुम उसके बगैर रह नहीं सकते। तुम्हारी स्थिति तुम्हारा व्यक्तित्व उसकी अभिव्यक्ति के बगैर संभव नहीं है| वो है, तो तुम हो। वो नहीं होता, तो तुम दिखाई नहीं देते। तुम होते ही नहीं| तुम्हारा अस्तित्व कुछ भी नहीं होता| तुम्हारा होना ही उसका होना बता देता है| आप फिर कहीं रोते क्यों हो, फिर गलत मार्ग की ओर तुम कैसे जा सकते हो।
.
तुम्हारा कर्तव्य तुम्हारा दायित्व परमात्मा के दिये रास्ते पर सदैव चलते रहना है, और यही सब निश्चित करने के लिए परमात्मा सदैव तुम्हारे साथ रहता है। जब तुम्हे जरूरत पड़े जब तुम्हें कमी आ जाए, जब तुम्हें शक्ति की जरूरत हो, वह तुम्हारे साथ तुम्हारी जरूरत को, तुमसे पहले पहचान कर, तुमका दे देता है| हमेशा-हमेशा की तरह, जैसा कि पहले भी वह देता आया है, हमेशा देता रहा हैं ओर हमेशा-हमेशा देता रहेगा।
[ओशो प्रवचन से]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें