मंगलवार, 31 मार्च 2015

*= भीमसिंहजी का काबुल युद्ध =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*नवम विन्दु*
*= भीमसिंहजी का काबुल युद्ध =*
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हुमायूँ के पश्चात् अकबर बादशाह बना । तब काबुल के आदम - खोर अकबर को बादशाह नहीं मानते थे । इससे उनको जय करने के लिये अकबर ने भीमसिंहजी को सेनापति बनाकर भेजा था । वहां काबुल में इनका युद्ध चांदाणी घाट पर हुआ था । युद्ध करते - करते एक दिन इनकी सेना की पराजय हुई ।
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भीमसिंह भी युद्ध भूमि में घायल होकर गिर पड़े, तब अनेक साथी सैनिक भी अपना सेनापति मारा गया, यह जानकार रणभूमि से भाग गये । और बीकानेर को समाचार भी भेज दिये की भीमसिंहजी रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गये । युद्ध समाप्ति पर शत्रु सेना भी अपना विजय घोष करती हुई आनन्द के साथ अपने शिविर में चली गई ।
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पीछे से भीमसिंह का एक सेवक जो इनकी शारीरिक सेवा करता था, रणक्षेत्र में गया और खोजते - खोजते इनके पास जा पहुँचा । युद्ध करते समय मर्माघात से ये मूर्छित हो गये थे, उस समय इनका देहांत नहीं हुआ था । सेवक ने आकर इनको व्यथा से व्यथित जीवित देखा और अपनी पीठ पर लादकर सेना के शिविर में न ले जाकर अन्य स्थान में एक बड़े घर पर ले गया ।
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बड़े घर वाले बड़े लोगों की रीति - नीति जानते ही थे, अतः उस घर के लोगों ने इनकी अच्छी सेवा करते हुये इनकी चिकित्सा कराई । इधर बीकानेर में भीम - सिंह की राणी को वीर - गति प्राप्त होने का समाचार मिला तब वह सती हो गई । उधर भीमसिंह जब अच्छे हो गये तब वे उस घर वालों को बोले - अब हम अपने देश जायेंगे । तब उस घर वालों ने इनको सब वस्त्र, शस्त्र, एक घोड़ा और मार्ग के लिये सब खर्च देकर सहर्ष इनको देश जाने के लिये विदा कर दिया ।
(क्रमशः)

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