शनिवार, 7 मार्च 2015

#daduji  
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
= हाथ गलकर काजी का मरना = 
फिर वह काजी अत्यन्त पश्चाताप करता हुआ अपने मन में सोचने लगा
"मैंने बहुत बुरा किया है जो इस परमेश्वर रूप संत के मुक्का मारा है |" - 
काजी कहै बुरा मैं कीन्हा | साहब के मुख कौंसा दीन्हा ||" (जनगोपाल वि. २|२४) फिर जिस हाथ से मुक्का मारा था वह गलने लग गया और तीन मास में वह काजी मर गया | उसका ससुर उरमायल काजी सांभर का ही था किंतु इस घटना के समय वह मथुरा में था | जमाई कि मृत्यु सुनकर मथुरा से सांभर आया और जमाई की मृत्यु का कारण दादूजी को जानकार अति क्रोधित हुआ - 
"सुन आयो उरमायल काजी | दादू मारूं हूं तब राजी || 
जँवाई मार्यो बेटी की रांड | म्हारो जमारो जग में भांड || ४ ||"
(वि. ११ भगवत लीला अद्वैत सिद्धांत, दौलत रामकृत दादू जीवनी) फिर उसने अपनी पत्नी आदि को कहा - मैं दादू को अभी दंड देता किंतु मुझे शीघ्र ही डीडवाने जाना है | वहां मेरा परम जरूरी काम है | वहां से आकर दादू को अच्छी सजा दूंगा - 
"अब कै जाय गाँव हो आऊं | पीछे याहीं सजा हु लाऊं ||" 
जनगोपाल जी ने विश्राम३ के पद्ध्य दो और तीन में सजा का स्वरूप इस प्रकार बताया है - "मैं गले तक भूमि में खड्डा खोदकर उसमें दादू को गाड़ दूंगा फिर उसके शिर पर बाण मारूंगा, बन्दूक से गोलियां मारूंगा, बरछी, समसेर, सतपतरी और कटार से मारूंगा | दादू ने यहां आकर काफिरों का मत चलाया है | ऐसे को हमारी इसलामी किताब में उक्त दंड ही देना लिखा है | उक्त दंड मिलेगा तब ही उसको पता लगेगा कि काजी का बुरा विचारने और मारने से क्या फल मिलता है | जब वह बेईमान काफिर कठोर दंड से ख़तम हो जायगा, तब ही मुसलमान धर्म की बात रहेगी | काजी ने दादूजी को ऐसा कठोर दंड देने का निश्चय किया | 
(क्रमशः)

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