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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= दशम विन्दु =*
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*= राम नाम केम थाय गुसांई =*
उक्त उपदेश सुनकर जगिया भाई बोला -
"राम नाम केम थाय गुसांई, राम नाम तणों स्थान कहांई ।
किमि दृढ़ थाय राम नू नामू, केन्हीं संगति थीं हूँ प्रामू ॥"
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जगिया भाई के उक्त प्रश्नों को सुनकर दादूजी बोले -
"वाहला म्हारा ! प्रेम भक्ति रस पीजिये,
रमिये रमता राम, म्हारा वाहला रे ।
हिरदा कमल में राखिये, उत्तम एहज ठाम,
म्हारा वाहला रे ॥टेक॥
वाहला म्हारा ! सद्गुरु शरणे अणसरे,
साधु समागम थाइ, म्हारा वाहला रे ।
वाणी ब्रह्म बखाणिये, आनन्द में दिन जाइ,
म्हारा वाहला रे ॥१॥
वाहला म्हारा ! आतम अनुभव ऊपजे,
उपजे ब्रह्म गियान म्हारा वाहला रे ।
सुख सागर में झूलिये, साँचो यह स्नान,
म्हारा वाहला रे ॥२॥
वाहला म्हारा ! भाव बन्धन सब छूटिये,
कर्म न लागे कोइ, म्हारा वाहला रे ।
जीवन मुक्ति फल पामिये१, अमर अभय पद होइ,
म्हारा वाहला रे ॥३॥
वाहला म्हारा ! अठ सिद्धि नौ निधि आँगणे,
परम पदारथ चार, म्हारा वाहला रे ।
दादूजन देखे नहीं, रातो सिरजल हार,
म्हारा वाहला रे ॥४॥
अर्थ: - हे हमारे प्रिय आत्मा ! प्रेमभक्ति रस का पान करो । हृदय - कमल में सदा राम का ध्यान रक्खो, राम के ध्यान के लिये, यही उत्तम स्थान है किन्तु सद्गुरु की शरण लिये बिना यह काम आगे नहीं चलता, संतों का समागन भी होना ही चाहिये । संत ब्रह्म संबन्धी वाणी कहते हैं, उनके संग से दिन आनन्द पूर्वक निकलते हैं । बुद्धि में आत्मानुभव उत्पन्न होकर ब्रह्मज्ञान प्रकट हो होता है फिर तो साधक सुख - सागर में झूलता है ।
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यही सच्चा स्नान है । इस स्नान से संपूर्ण बन्धन खुल जाते हैं, कर्तव्य भाव न रहने से कोई भी कर्म का फल नहीं लगता । जीवन्मुक्ति रूप फल प्राप्त१ करके अमर - अभय पद को प्राप्त होता है । फिर उसके निवास स्थान के आँगण में अष्ट सिद्धि, नव निधि, और अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष ये चारों पदार्थ आते हैं किंतु वह भक्त उनकी ओर देखता भी नहीं, वह तो सृष्टिकर्ता प्रभु के स्वरूप में ही अनुरक्त रहता है ।
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उक्त पद के रहस्य मय उपदेश को श्रवण करके जगिया भाई दादूजी के शिष्य बन गये और भगवद् भजन करके एक महान् सिद्ध पुरुष हो गये, फिर ये जग्गाजी के नाम से प्रसिद्ध हुये । इनकी विशेषताओं का वर्णन दादूजी के जीवन चरित्रों में कई स्थानों में मिलता है । इनकी एक लघु 'भक्तमाल' और पद भी हैं । ये दादूजी के ५२ शिष्यों में हैं ।
(क्रमशः)
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