शनिवार, 11 अप्रैल 2015

= १०२ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
अनल पंखी आकाश को, माया मेरु उलंघ |
दादू उलटे पंथ चढ, जाइ बिलंबे अंग ||९५||
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जैसे अनल पक्षी आकाश से उतर कर, इधर - उधर फिरता है | फिर पीछे उलट कर आकाश में अपने माता - पिता से मिलकर प्रसन्न होता है | इसी प्रकार जिज्ञासुजन, ‘‘माया मेरु उलंघि’’ कहिए गुणातीत होकर, उलटे पंथ स्वस्वरूप में लीन होकर ब्रह्मभाव को प्राप्त होते हैं ||९५||
अनल पंखि को चीकलो, पड़तां कियो विचार |
सुरति फेरि उलटा फिर्‍या जाइ मिल्या परिवार ||
सप्त सिंधूरे ले उड़े, अनिल पंखि आकास |
‘रज्जब’ सो भी जीव है, वेत्ता करो विमास ||
( सिंधूरे = हाथी; विमास = विमर्श )
(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)
(चित्रकला संयोजन ~@मुक्ता अरोड़ा स्वरुप निश्चय)

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