सगुणा गुण केते करै, निगुणा न मानै कोइ ।
दादू साधु सब कहैं, भला कहाँ तैं होइ ॥
सगुणा गुण केते करै, निगुणा न मानै नीच ।
दादू साधू सब कहैं, निगुणा के सिर मीच ॥
साहिबजी सब गुण करै, सतगुरु के घट होइ ।
दादू काढे काल मुख, निगुणा न मानै कोइ ॥
साहिबजी सब गुण करै, सतगुरु मांही आइ ।
दादू राखै जीव दे, निगुणा मेटै जाइ ॥
साहिबजी सब गुण करै, सतगुरु का दे संग ।
दादू परलै राखिले, निगुणा न पलटै अंग ॥
साहिब जी सब गुण करै, सतगुरु आडा देइ ।
दादू तारै देखतां, निगुणा गुण नहिं लेइ ॥
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