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|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
अथ नवम विन्दु ~
= शिष्य बड़े सुन्दरदासजी =
= भीमसिंहजी का काबुल युद्ध =
हुमायूँ के पश्चात् अकबर बादशाह बना | तब काबुल के आदम-खोर अकबर को बादशाह नहीं मानते थे | इससे उनको जय करने के लिये अकबर ने भीमसिंहजी को सेनापति बनाकर भेजा था | वहां काबुल में इनका युद्ध चांदाणी घाट पर हुआ था | युद्ध करते-करते एक दिन इनकी सेना की पराजय हुई | भीमसिंह भी युद्ध भूमि में घायल होकर गिर पड़े, तब अनेक साथी सैनिक भी अपना सेनापति मारा गया, यह जानकार रणभूमि से भाग गये | और बीकानेर को समाचार भी भेज दिये की भीमसिंहजी रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गये | युद्ध समाप्ति पर शत्रु सेना भी अपना विजय घोष करती हुई आनन्द के साथ अपने शिविर में चली गई |
पीछे से भीमसिंह का एक सेवक जो इनकी शारीरिक सेवा करता था, रणक्षेत्र में गया और खोजते-खोजते इनके पास जा पहुँचा | युद्ध करते समय मर्माघात से ये मूर्छित हो गये थे, उस समय इनका देहांत नहीं हुआ था | सेवक ने आकर इनको व्यथा से व्यथित जीवित देखा और अपनी पीठ पर लादकर सेना के शिविर में न ले जाकर अन्य स्थान में एक बड़े घर पर ले गया | बड़े घर वाले बड़े लोगों की रीति-नीति जानते ही थे, अतः उस घर के लोगों ने इनकी अच्छी सेवा करते हुये इनकी चिकित्सा कराई | इधर बीकानेर में भीम-सिंह की राणी को वीर-गति प्राप्त होने का समाचार मिला तब वह सती हो गई | उधर भीमसिंह जब अच्छे हो गये तब वे उस घर वालों को बोले - अब हम अपने देश जायेंगे | तब उस घर वालों ने इनको सब वस्त्र, शस्त्र, एक घोड़ा और मार्ग के लिये सब खर्च देकर सहर्ष इनको देश जाने के लिये विदा कर दिया |
(क्रमशः)
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