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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*नवम विन्दु*
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*= भीमसिंहजी को वैराग्य =*
भीमसिंहजी ने कहा - अब घर जाकर क्या करना है ? घर तो गृहिणी तक ही होता है । अब घर नहीं चलूंगा, अब तो किसी उच्चकोटि के संत की शरण होकर भजन ही करूंगा, आप जाओ भीमसिंहजी के उक्त विचार सुनकर तथा वैराग्य को देखकर प्रहलादजी को भी वैराग्य हुआ किंतु वे एक बार घर गये, वहां जाकर सब समाचार दिया ।
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तब परिवार वालों ने भीमसिंहजी को घर पर लाने का तथा उनके पास जाकर मिलने का विचार किया । तब प्रहलादजी ने उनको उक्त दोनों ही कार्य नहीं करने का परामर्श दिया । प्रहलादजी ने कहा - अब उनका घर न आने का दृढ़ निश्चय है, वे अब ईश्वर भजन ही करना चाहते हैं । अतः परलोक साधन तथा मोक्षमार्ग में प्रवृत्त व्यक्ति के कार्य में विघ्न नहीं डालना चाहिये । इत्यादिक वचनों से परिवार वालों को रोक दिया और स्वयं प्रहालादजी ने पुनः भीमसिंहजी के पास जाने का विचार स्थिर रखा ।
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*= चतुरानागाजी से मिलन =*
प्रहलादजी के जाने के पश्चात् भीमसिंहजी ने अपने पण्डे से पूछा - यहां आस - पास के प्रदेश में कोई उच्चकोटि का संत है क्या ? यदि हो तो उसका परिचय मेरे को दो, और उनके पास मेरे को ले चलो । पण्डे ने कहा - आजकल यहां एक निम्बार्क सम्प्रदाय के चतुरानागाजी नामक प्रसिद्ध सन्त हैं । व्रज में वे ही आजकल सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं । इन्हीं दिनों में प्रहलादजी भी लौट आये थे ।
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फिर भीमसिंह ने पण्डे को कहा - अब तुम हमको चतुरानागाजी के पास ले चलो । फिर भीमसिंहजी चादर प्रसाद आदि सामग्री दीक्षा लेने योग्य सब साथ ले पण्डे के साथ भीमसिंह तथा प्रहलादजी गये । दर्शन करके दण्डवत की और भेंट चढ़ाकर सामने बैठ गये । फिर अवसर देखकर भीमसिंहजी बोले - भगवन् ! मुझे दीक्षा=गुरुमन्त्र देकर कृतार्थ करिये ।
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तब चतुरानागाजी ने भीमसिंहजी की ओर देखा और थोड़ी देर के लिये ध्यानस्थ हो गये । फिर ध्यान टूटने पर बोले - आप तो संतप्रवर दादूजी की आत्मा हैं, आपको मैं शिष्य नहीं बना सकता हूँ । दादूजी के पास जाकर उनके शिष्य बनो । भीमसिंहजी ने पूछा - दादूजी कौन हैं ? वे कहां मिलेंगे ?
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चतुरानागाजी ने कहा - वे सनक मुनिजी के अवतार हैं, परमेश्वर की आज्ञा से निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का विस्तार करने के लिये बालरूप धारण करके साबरमती नदी में बहते हुये अहमदाबाद के लोधीराम नागर को अहमदाबाद के पास मिले थे । उसी ने उनको पाला - पोसा था, अतः उसी के पौष्य पुत्र हैं ।
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वे अब करड़ाला ग्राम के पर्वत से सांभर आने वाले हैं । तुमको उनका दर्शन साँभर में ही होगा । साँभर आने पर तुम जाकर उनके शिष्य हो जाना । यह सब वृत्तांत मैंने अभी ध्यान द्वारा जाना है और यह सब सत्य है । चतुरानागाजी द्वारा संतप्रवर दादूजी का परिचय प्राप्त होने पर भीमसिंह अति प्रसन्न हुये । फिर अपने भविष्य में होने वाले गुरुदेव की प्रतीक्षा करने लगे ।
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राजसी भेषभूषा त्याग दिया । अश्व, शस्त्र,वस्त्र आदि सभी अपने साथ जो सेवक था उसको दे दिये और उसे कह दिया अब तुम अपने घर चले जाओ । नौकर के चले जाने पर भीमसिंहजी ने अपने वस्त्र भगवां कर लिये । भीमसिंहजी का यह सब कुछ देखकर प्रहलादजी को वैराग्य हो गया, उन्होंने भी पुनः घर जाने का विचार छोड़ दिया ।
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मथुरा, वृन्दावन को त्यागकर ये दोनों महानुभाव साँभर आने के उद्देश्य से राजस्थान की ओर चल दिये । मार्ग में घाटड़ा ग्राम के पास इन्होंने पर्वत के पास ही बहती हुई नदी को और सुन्दर स्थान को देखकर संकल्प किया । यह स्थान भी बैठकर भजन करने योग्य है ।
(क्रमशः)
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