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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*नवम विन्दु*
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*= मुकुन्द भारतीजी का सांभर आना =*
म्हार सामोद के पर्वत की गुफा में रहने वाले मुकुन्द भारतीजी को जब ज्ञात हुआ की दादूजी सांभर में आ गये हैं और उनको वहां मुसलामानों ने बहुत कष्ट भी दिया है किंतु उनकी रक्षा तो सर्व प्रकार से और अद्भुत रीति से परमेश्वर ने की है । मुसलमान उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके हैं ।
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उक्त समाचार सुनकर मुकुन्द भारतीजी भी दादूजी के दर्शनार्थ सांभर आये और दादू आश्रम में जाकर, दादूजी को 'सत्यराम' बोलकर प्रणाम किया । उन्हें देखकर दादूजी ने आसन से उठकर उनका स्वागत किया । मुकुन्द भारतीजी का शरीर वृद्ध था । दोनों संत परस्पर प्रेम से मिले, फिर बराबर बैठ गये ।
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दादूजी ने कहा - आज प्रभु ने महान् कृपा की है जिससे मांडव्य मुनि के अवतार आप जैसे भगवद् भक्त संतजी से मिलन हुआ है । फिर परस्पर ज्ञान चर्चा करने लगे । मुकुन्द भारतीजी ने कहा - आपके अनुभव पूर्ण वचनों के सुनने से परमानन्द प्राप्त होता है । मेरा मन तो आपके दर्शनार्थ बहुत समय से छटपटा रहा था किंतु जब आप इधर पधारे और मुझे आपके आने का समाचार मिला तब मैं आ सका हूँ ।
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पहले आपकी बाल्यावस्था में अहमदाबाद आपके पौष्य पिता लोधीराम नागर के घर आपके दर्शनार्थ आया था । तब आप बालकों में खेल रहे थे । फिर मैं पचास साधुओं के साथ लोधीराम नागर के बाग में पाँच दिन रहा था । आपके पिता लोधीराम नागर ने सब संतों की अच्छी सेवा की थी । वहां से फिर मैं हिंगलाज देवी के दर्शनार्थ पचास संतों के साथ गया था । तब से ही मेरे मन में आपके दर्शनों की इच्छा बनी ही रहती है ।
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अब यह दर्शन आपका अंतिम ही है । अब मेरा शरीर ६ मास ही रहेगा । मैं आपको अपनी योग शक्ति से जानता हूँ, आप सनकजी के अवतार हैं और परमेश्वर की आज्ञा से निर्गुण भक्ति का विस्तार करने राजस्थान में पधारे हैं । आपके साधन मार्ग का बहुत विस्तार होगा । आपकी साधन पद्धिति से असंख्य प्राणियों का उद्धार होगा । इस प्रकार सत्संग विचारादि करते हुये मुकुन्द भारतीजी पांच दिन दादू आश्रम पर विराजे, फिर विचर गये ।
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इति श्री दादूचरितामृत नवम बिन्दु समाप्तः
(क्रमशः)
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