#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
कोरा कलश अवाह का, ऊपरि चित्र अनेक ।
क्या कीजे दादू वस्तु बिन, ऐसे नाना भेष ॥
*बाहर दादू भेष बिन, भीतर वस्तु अगाध ।*
*सो ले हिरदै राखिये, दादू सन्मुख साध ॥*
दादू भांडा भर धर वस्तु सौं, ज्यों महँगे मोल बिकाइ ।
खाली भांडा वस्तु बिन, कौड़ी बदले जाइ ॥
दादू कनक कलश विष सौं भर्या, सो आवै किस काम ।
सो धन कूटा चाम का, जामें अमृत राम ॥
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साभार : @Anil Agrohia ~
ऋषि अष्टावक्र के जीवन की एक घटना:
राजा जनक मे काल में अष्टावक्र जी नाम के एक बहुत विद्वान संत थे, बडे ही महान ऋषि थे, पर शारिरिक रुप से थोडे टेढ़े मेढ़े थे, आप और हम कह सकते हैं कि वे अपने शरीर में कुल मिला कर आठ जगह से टेढ़े मेढ़े थे |
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कहते हैं कि राजा जनक की सभा में वे एक बार आये और तब उनकी चाल ढ़ाल, रंग रुप देख कर बहुत से दरबारी हंस पडे | अकारण दरबारियों के हंसने का कारण वे जान चुके थे कि ये लोग मेरे शरीर को देख कर हंस रहे हैं, और तब अष्टावक्र जी नें कहा - मूर्खों, चमडी को देख कर तो चमार हंसा करते हैं तुम जेसे दिखावटी सभ्य लोगों और चमारों में मुझे कोई अंतर दिखाई नहीं पडता |
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अष्टावक्र के क्रोध से दरबारियों की घिग्घी बंध गयी, की कहीं ये ऋषि गुस्से ही गुस्से में हम सभी को कोई श्राप ना दे दे | फिर राजा जनक के कहने पर सभी नें तत्क्षण उनसे माफी मांगी | सच भी है किसी कि शक्ल सूरत या दिखावे पे ना जाओ और कुछ ए॓सा कृत्य ना करो की बाद में पछतावा हो |
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