बुधवार, 1 अप्रैल 2015

#‎daduji‬
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |

अथ नवम विन्दु ~
= शिष्य बड़े सुन्दरदासजी = 
बड़े सुन्दरदासजी का पूर्व आश्रम का नाम भीमसिंह था | ये बीकानेर नरेश जैतसिंह के पुत्र थे | जैतसिंह के १३ पुत्र थे | सौढी राणी काश्मीर-दे से चार पुत्र थे; १- कल्याणमल(सिंह), २ - भीमराज(सिंह), ३ - ठाकुरसी, ४ - मालदे | अन्य पुत्र दूसरी राणी सोनगरी रामकुमारी के थे | उन सबमें बड़े कल्याणसिंह थे | सब भाइयों में भीमसिंह अतिशूर और हरि भक्त भी थे | भीमसिंह का जन्म वि. सं. १५७८ के लगभग हुआ था | इनके बड़े भाई कल्याणसिंह जन्म १५७५ वि. सं. में हुआ था | ये जैतसिंह का देहांत होने पर राजगद्दी पर बैठे थे | कल्याणसिंह के राजगद्दी पर बैठने पश्चात् जोधपुर के मालवदेव ने बीकानेर राज्य के आधे भाग पर अपना अधिकार कर लिया था | फिर कल्याणसिंह सिरसा में रहने लगे थे | कल्याणसिंह से आज्ञा लेकर भीमसिंह सिरसा से दिल्ली जाकर बादशाह हुमायूँ के पास रहने लगे थे | 
मालवदेव ने वीरमदेव को निकालकर मेड़ता पर भी अपना अधिकार कर लिया था | वीरमदेव भी कल्याणसिंह के पास सिरसा होता हुआ भीमसिंह के पास दिल्ली चला आया | फिर भीमसिंह और वीरमदेव दोनों शेरशाह के पास रहने लगे | कुछ समय में इन दोनों के व्यवहार से शेरशाह प्रसन्न हुआ तब शेरशाह ने एक विशाल सेना लेकर इन दोनों के साथ मालवदेव पर चढ़ाई की | मार्ग में कल्याणसिंह भी मिल गये | फिर मालवदेव को हरा कर शेरशाह ने बीकानेर का छीना हुआ प्रदेश कल्याणसिंह और मेड़ता वीरमदेव को दे दिया | उस समय भीमसिंह की वीरता से प्रसन्न होकर तथा गया हुआ राज्य पीछा लौटाने के बदले में कल्याणसिंह ने अपने छोटे भाई भीमसिंह को "गई भूमि का बाहुड़ विरद दिया और भीमसर(बीदासर के आसपास) में उनका ठिकाना बाँध दिया | (दयालदास की ख्यात जिल्द २ पत्र १७ से २०) गत मालवदेव के साथ हुये युद्ध में भीमसिंह के शौर्य प्रदर्शन की महिमा सुनकर हुमायूँ बादशाह ने पुनः भीमसिंह को अपने पास दिल्ली बुला लिया था | ये अधिकतर हुमायूँ के पास ही रहा करते थे | 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें