#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*२३. आपुने भाव को अंग*
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*इन्दव छंद*
*नीचैं तैं नीचै रु ऊंचे तैं उपरि,*
*आगैं तैं आगै है पीछै तैं पीछौ ।*
*दूरि तैं दूरि नजीक तैं नैरौ हि,*
*आडै तैं आडौ है तीछे तैं तीछौ ॥*
*बाहर भीतर, भीतर बाहिर,*
*ज्यौं कोऊ जानै त्यौं ही करि ईछो ।*
*जैसौ ही आपुनौ भाव है सुन्दर,*
*तैसौ ही है दृग खौलि कै बीछौ ॥७॥*
*विचारानुसार दर्शन* : नीचे से नीचा, ऊँचे से उंचा, आगे(अग्रिम) से अग्रभाग तथा पीछे(पश्चिम) से पिछला भाग ।
दूर से दूर, समीप से समीप, टेढ़े से टेढ़ा तथा तिरछे(तिर्यक्) से तिरछा ।
बाहर या भीतर, भीतर या बाहर उसको जैसा जिसका ज्ञान है वैसा ही चाहने लगता है ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - जैसा उसका अपना आत्मभाव(विचार) है, वैसा ही वह उसे अपनी आंखों से देखता है ॥७॥
(क्रमशः)
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