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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ द्वादश विन्दु ~*
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*= गलता से चार साधुओं का साँभर आना (१) =*
सांभर में नाना स्थानों से साधक लोग आकर दादूजी से उपदेश ग्रहण करने लगे, इससे दादूजी की निर्गुण, निराकार, निरंजन ब्रह्म भक्ति का विस्तार उत्तरोत्तर होने लगा । यह देखकर कुछ वैष्णव महंतों ने मिलकर गलता में विचार किया ।
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दादूजी का निर्गुण, निराकार, निरंजन, ब्रह्मवाद बढ़ता जा रहा है, उससे हमारे सगुण साकार रूप साधना में लोगों की रूचि कम होती जा रही है । अतः दादू को किसी भी प्रकार से अपने में मिला लेना चाहिये अर्थात् माला तिलकादि देकर वैष्णव बना लेना चाहिए । जिससे उसका प्रचार रुक जायगा और उसके निमित्त से हमारी साधन पद्धति का और भी अधिक प्रचार होगा । कारण उसके उपदेश का जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है ।
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उक्त प्रस्ताव सर्व संमति से पास हो गया तब गलता से चार साधुओं को कंठी, माला, तिलकादि अपने संप्रदाय का भेष - भूषा देकर कहा - तुम साँभर में जाकर दादू को वैष्णव बनाने का अपनी शक्ति अनुसार पूर्ण प्रयत्न करो । उन साधुओं के नाम ये थे - गैबीदास, जंगीदास, रामघटादास, छीतरदास ।
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चारों साधु साँभर में दादूजी के पास पहुँचे और दादूजी को कहा - हमारे महाराज ने तुम्हारे पर दया करके तुम्हारे लिये कंठी, माला भेजी है, इनको धारण करो और तिलक लगाओ । फिर हम आपको अपने संप्रदाय में मिलाकर अच्छा पद देंगे जिससे आपकी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ जायगी । दादूजी ने कहा -
"दादू एक हि आतमा, साहिब है सब मांहि ।
साहिब के नाते मिलें, भेष पंथ के नांहिं ॥"
अर्थात् आत्मा सबकी एक ही है, सब में ही परमात्मा भी विद्यमान हैं ।
(क्रमशः)
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