#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू लाइक हम नहीं, हरि के दर्शन जोग ।
बिन देखे मर जाहिंगे, पीव के विरह वियोग ॥९२॥
जैसे किसी भाग्यवान् पुरुष के पास पारस होवे तो कोई संसारीजन उसको मूल्य से नहीं खरीद सकते, कदाचित् स्वामी ही स्वयं कृपा करे तो भले ही प्राप्त होवे । इसी प्रकार श्री सतगुरु भगवान् ईश्वर के प्रति अपना विनय भाव दर्शाते हैं कि हे प्रभु ! हम विरहीजन आपके दर्शनों के योग्य नहीं है । हमारे में भक्ति, विरह आदि साधनों में अपूर्णता और मनुष्य जन्मरूपी यह अमूल्य अवसर प्राप्त करके भी आपके दर्शनों बिना विरह व्याकुलता में ही हम प्राणों का विसर्जन करेंगे । हे प्रभु ! आप ही कृपा करें तो हम विरहीजनों का उद्धार हो सकता है । अर्थात् आत्म-साक्षात्कार या ईश्वर-दर्शन रूप पूर्ण प्राप्ति बिना जिज्ञासुओं को अपनी साधना में ही अपूर्णता माननी चाहिये । परमेश्वर की भक्त-वत्सलता आदि में संशय करना उपयुक्त नहीं हैं ॥९२॥
प्रेम बनिज कीन्हों नहीं, नेह नफो नहिं जान ।
ऊधौ अब उलटी भई, प्राण पूँजी मेहमान ॥
दरद नहीं दीदार का, तालिब नांहि जीव ।
रज्जब विरह वियोग बिन, कहां मिले सो पीव ॥
(श्री दादूवाणी ~ विरह का अंग)
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साभार : मुक्ता अरोड़ा स्वरुप निश्चय ~
जिसे ये समझ आये कि उसकी झोली कंकरों से भरी है वही सद्गुरु से दर्शन की याचना करता है, जिसे अपनी झोली रत्नों से भरी दिखे वह ऐसी अनुपम याचना के आनन्द से वंचित ही रह जाता है ।
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