गुरुवार, 30 जुलाई 2015

*शिष्य तेजानन्द*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ १६ वां विन्दु ~*
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*शिष्य तेजानन्द -*
तेजानन्दजी गुजरात देश के नृसिंहपुरा ग्राम के रहने वाले वैश्य थे । इन्होंने बणजारों से दादूजी का यह पद सुना -
"इनमे क्या लीजे क्या दीजे,
जन्म अमोलक छीजे ॥टेक॥
सोवत स्वप्ना होई, जागे तैं नहिं कोई ।
मृग तृष्णा जल जैसा, चेत देख जग ऐसा ॥१॥
बाजी भरम दिखावा, बाजीगर डहकावा१ ।
दादू संगी तेरा, कोई नहीं किस केरा ॥२॥
अर्थ - अरे ! इन विषयों में क्या लेना देना है ? व्यर्थ ही अमूल्य मानव जन्म क्षीण होता है । ये तो प्राणी अज्ञान निद्रा में सोया हुआ है तब तक ही स्वप्नवत भास रहे हैं, ज्ञान जाग्रत में आते ही, कोई भी नहीं रहेगा । सचेत होकर देख, यह संसार मृग तृष्णा के जल वत प्रतीति मात्र ही है । जैसे बाजीगर बाजी दिखाकर बहकाता१ है वैसे ही भ्रम से सत्य भास रहा है । वास्तव में इस संसार में न तेरा कोई है और न तू ही किसी का है ।
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उक्त शब्द से तेजानन्दजी अति प्रभावित हुये और बणजारों से पूछा - यह वाणी किनकी है ? बणजारों ने कहा - दादूजी की है । तेजानन्दजी ने पूछा - वे आज कल कहाँ हैं । बणजारों ने कहा - राजस्थान के आमेर नगर में हैं । यह सुनकर तेजानन्दजी ने कहा - मैं उनके दर्शन करने जाऊंगा ।
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तब बणजारों ने कहा हम आपको दादूजी महाराज के लिये एक चोला देंगे, वह भी आप लेते जाना और दादूजी महाराज के चरणों में रखकर हमारी ओर से उनको प्रार्थना करना कि यह बणजारों ने आपके पहनने के लिये भेजा है, इसे आप ही पहनें । तेजानन्दजी ने बणजारों की उक्त बात मानली । फिर बणजारों ने अपनी इच्छा के अनुसार सुन्दर चोला बनवाकर तेजानन्दजी को दिया ।
(क्रमशः)

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