बुधवार, 1 जुलाई 2015

२६ . बिचार को अंग ~ ७


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|| श्री दादूदयालवे नमः ||
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= २६. बिचार को अंग =*
*एक ही कूप कै नीर तैं सींचत,* 
*ईख अफीम ही अंब अनारा ।* 
*होत उहै जल स्वाद अनेकनि,* 
*मिष्ट कटुक्क खटा अरु खारा ॥* 
*त्यौ ही उपाधि संजोग तैं आतम,* 
*दीसत आइ मिल्यौ सुबिकारा ।* 
*काढ़ि लिये जुविचार बिवस्वत,* 
*सुन्दर शुद्ध स्वरूप है न्यारा ॥७॥* 
कुछ इस बात पर भी विचार कीजिये कि ईख, अफीम, आम एवं अनार - इन सभी वृक्षों को एक ही कूए के जल से सींचा जाता है । 
यहाँ कूएँ के जल का स्वाद तो एक ही है, परन्तु इसके जल से सींचे गये वृक्षों के फल विविध रस वाले हैं । इनमें किसी का रस मीठा है, किसी का खारा, किसी का खट्टा है तो किसी का कटु । 
इसी तरह उपाधि(अवछिन्न गुण धर्म) भेद से आत्मा में अन्यत्र से आकर कुछ विकार मिल जाते हैं । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - यदि इस पर विवेकपूर्वक विचार किया जाय तो उस आत्मा का स्वरूप शुद्ध, निष्कलंक एवं निर्विकार ही दिखायी देगा ॥७॥ 
(क्रमशः)

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