शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

२८ . आत्म अनुभव को अंग ~ ५

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*२८. आत्म अनुभव को अंग*
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*= प्रश्नोत्तर =* 
*एक कि दोइ न एक न दोइ,* 
*उहीं कि इहीं न उहीं न इहीं है ।* 
*शून्य कि थूल न शून्य न थूल,* 
*जहीं कि तहीं न जहीं न तहीं है ॥* 
*मूल कि डाल न मूल न डाल,* 
*वहीं की महीं न वहीं न महीं है ।* 
*जीव कि ब्रह्म न जीव न ब्रह्म,* 
*तौ है कि नहीं कछु है न नहीं है ॥५॥* 
प्रश्न : वह साक्षात्करणीय तत्व एक है कि दो ? 
उत्तर : वह तत्त्व वस्तुतः न एक कहा जा सकता है न दो । 
प्रश्न : वह तत्त्व यहाँ है कि वहाँ है ? 
उत्तर : वस्तुतः वह न यहाँ है, न वहाँ है । 
प्रश्न : उस तत्त्व को स्थूल कहें या सूक्ष्म ? 
उत्तर : वह तत्त्व वस्तुतः न स्थूल कहा जा सकता है, सूक्ष्म ।
प्रश्न : वह जैसा है कि तैसा ? 
उत्तर : वह न जैसा है न तैसा, अर्थात् उसकी कोई उपमा नहीं है । 
प्रश्न : उस तत्त्व को मूल कहें कि शाखा ? 
उत्तर : न उसको मूल कहा जा सकता है, न शाखा । 
प्रश्न : वह बृहत्(महान्) है ? या अणु(लघु) ?(अणोरणीयान्महतो महीयान् ?) 
उत्तर : न वह महान् है न अणु । 
प्रश्न : उसे जीव कहें या ब्रह्म ? 
उत्तर : न वह वस्तुतः जीव है न ब्रह्म । 
प्रश्न : वह है कि नहीं ?(इस तरह तो उसके अस्तित्व में भी सन्देह हो रहा है ?) 
उत्तर : न ‘वह है’, ऐसा कहा जा सकता है, न ‘नहीं है’ ऐसा कहा जा सकता है । 
(उसका तो ‘नेति नेति’ से ही वर्णन किया जा सकता है) ॥५॥
(क्रमशः)

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