#daduji
卐 सत्यराम 卐
सो घर सदा विचार का, तहाँ निरंजन वास ।
तहँ तूँ दादू खोजि ले, ब्रह्म जीव के पास ॥
जहँ तन मन का मूल है, उपजे ओंकार ।
अनहद सेझा शब्द का, आतम करै विचार ॥
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साभार ~ successinindustrry.wordpress.com
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अहम् ब्रह्मास्मि का वास्तविक तात्पर्य क्या है ?
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अहम् = मैं, स्वयं का अभिमान, कोई व्यक्ति यह सोच ही नहीं सकता कि वह नहीं है। मैं नही हूँ - यह सोचने के लिए भी स्वयं के अभिमान की आवश्यकता होती है। या नहीं ? विचार करें ।
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ब्रह्म = सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्व-व्याप्त, वह शक्ति जिससे सब कुछ, यहाँ तक कि ईश्वर भी उत्पन्न होते हैं।
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अस्मि = हूँ, होने का भाव, बने होने का संकल्प ।
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अहम् ब्रह्मास्मि का तात्पर्य यह निगमित होता है कि मानव-व्यक्ति स्वयं संप्रभु है। उसका व्यक्तित्व अत्यन्त महिमावान है - इसलिए हे मानवों ! अपने व्यक्तित्व को महत्त्व दो। आत्मनिर्भरता पर विश्वास करो। कोई ईश्वर, पंडित, मौलवी, पादरी और इस तरह के किसी व्यक्तियों को अनावश्यक महत्त्व न दो।
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तुम स्वयं शक्तिशाली हो - उठो, जागो और जो भी श्रेष्ठ प्रतीत हो रहा हो, उसे प्राप्त करने हेतु उद्यत हो जाओ । जो व्यक्ति अपने पर ही विश्वास नही करेगा - उससे दरिद्र और गरीब मनुष्य दूसरा कोई न होगा। यही है अहम् ब्रह्मास्मि का अन्यतम तात्पर्य ।
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