शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

💐💐 ‪#‎daduji‬ 💐💐
॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
३४८. परिचय परीक्षा । पतिताल ~
राम मिल्या यूँ जानिये, जाको काल न व्यापै ।
जरा मरण ताको नहीं, अरु मेटै आपै ॥ टेक ॥ 
सुख दुख कबहुँ न ऊपजै, अरु सब जग सूझै ।
क रम को बाँधै नहीं, सब आगम बूझै ॥ १ ॥ 
जागत ह्वै सो जन रहै, अरु जुग जुग जागै ।
अंतरजामी सौं रहै, कछु काई न लागै ॥ २ ॥ 
काम दहै सहजैं रहै, अरु शून्य विचारै ।
दादू सो सब की लहै, अरु कबहुं न हारै ॥ ३ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव परिचय किये हुए लक्षणों द्वारा संत की परीक्षा बता रहे हैं कि हे जिज्ञासुओं ! जिसको राम का दर्शन हो गया, तो फिर उसको किसी प्रकार का काल आकर स्पर्श नहीं करता और न शरीर में जर्जर अवस्था ही आती हैतथा न मरणे का ही भय व्याप्त होता है । वह अपने अन्दर से सम्पूर्ण सांसारिक अभिमान को नष्ट कर देता है और उसके मन में किसी प्रकार के संयोग और वियोग से सुख दुःख नहीं होते । सम्पूर्ण संसार माया का परिणाम प्रतीत होता है । उसे किसी भी प्रकार का कर्म - बन्धन में नहीं बांधता । 
आगम कहिए शास्त्र जिसको लक्षणा वृत्ति से प्रतिपादन करते हैं, उस ब्रह्म को वह निज आत्म - स्वरूप करके जानता है । ऐसा ज्ञानी संत मोह - निद्रा से जागकर जन्म - मरण से रहित होकर जुग - जुग में ब्रह्म - स्वरूप में ही जागता रहता है । अन्तर्यामी ब्रह्म से अभेद होकर सदैव रहता है । उसके किसी प्रकार की पाप आदि कालिमा नहीं लगती । काम - क्रोध आदि का स्वभाव से ही नाश करके शून्य, कहिए निर्विकार ब्रह्म के विचार में लगा रहता है और सबकी वाणी को अपने विचार के अनुकूल ग्रहण करता है । उसकी इस संसार में कभी हार नहीं होती । वह अपनी निष्ठा में स्थिर रहता है


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