सोमवार, 30 नवंबर 2015

= ६२ =

卐 सत्यराम सा 卐
राम विमुख जग मर मर जाइ, जीवैं संत रहैं ल्यौ लाइ ॥ टेक ॥
लीन भये जे आतम रामा, सदा सजीवन कीये नामा ॥ १ ॥
अमृत राम रसायन पीया, तातैं अमर कबीरा कीया ॥ २ ॥
राम राम कह राम समाना, जन रैदास मिले भगवाना ॥ ३ ॥
आदि अंत केते कलि जागे, अमर भये अविनासी लागे ॥ ४ ॥
राम रसायन दादू माते, अविचल भये राम रंग राते ॥ ५ ॥
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साभार ~ कृष्ण स्वरूप आसुरि ~
|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
मानस में नाम-वन्दना ~ नाम-जपका अनुभव ~
जिसकी नाममें रुचि होती है, उसे पता लगता है कि नामकी महिमा क्या होती है ? दूसरेको क्या पता नाम क्या चीज है ? हरेक आदमी क्या समझे ? नाममें रुचि ज्यादा होती है जप करनेसे, भजन करने से और उसमें तल्लीन होनेसे । सन्त-महात्माओं की वाणीमें जो बातें आती हैं, वे विलक्षण बातें स्वयं अनुभवमें आने लगती हैं । सन्तोंने अलग-अलग स्थानोंपर अपना अलग-अलग अनुभव लिखा है ।
एक बहन थी । उसने अपने नाम-जपकी ऐसी बातें बतायीं, जो सन्तोंकी वाणीमें भी मिलती नहीं । उसने कहा कि नाम जपते-जपते शरीरमें ठण्डक पहुँचती है । सारे शरीरमें ठण्डा-ठण्डा झरना बहता है तथा एक प्रकारके मिठास और आनन्दकी प्राप्ति होती है । मैंने सन्तों की वाणी पढ़ी है, पर ऐसा वर्णन नहीं आता, जैसा उस बहन ने अपना अनुभव बताया । ऐसे-ऐसे अलौकिक चमत्कार सन्त-महात्माओं ने थोड़े-थोड़े ही लिखे हैं । वे कहाँ तक लिखें ? जो अनुभव होता है, वो वर्णन करनेमें आता नहीं । वे खुद ही जानते हैं ।
सो सुख जानइ मन अरु काना ।
नहिं रसना पहिं जाइ बखाना ॥
वह कहनेमें नहीं आता । आप इसमें लग जायँ । भाइयोंसे, बहनोंसे, सबसे मेरी प्रार्थना है कि आप नाम-जपमें लग जायँ । आप निहाल हो जायेंगे और दुनिया निहाल हो जायगी । सब पर असर पड़ेगा और आपका तो क्या कहें, जीवन धन्य हो जायगा । ‘भगवन्नाम’ की अपार महिमा है । गोस्वामीजी महाराज आगे वर्णन करते हैं -
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ।
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥
(मानस, बालकाण्ड १९)
पहले ‘राम’ नामके अवयवोंका वर्णन हुआ फिर ‘महामन्त्र’ क वर्णन हुआ । अब दो अक्षरोंका वर्णन होता है । ‘रा’ और ‘म’- ये दो अक्षर हैं । जो भगवान्‌ के प्यारे भक्त हैं, वे सालि(बढ़िया चावल) की खेती हैं और वर्षा-ऋतु श्रीरघुनाथजी महाराज की भक्ति है । वर्षा-ऋतुमें खूब वर्षा हुआ करती है । चावलों की खेती, बाजरा आदि अनाजों की खेतीसे भिन्न होती है । राजस्थान में खेत में यदि पानी पड़ा रहे तो घास सूख जाय, पर चावल के खेतमें हरदम पानी भरा ही रहता है । जिससे खेतमें मछलियाँ पैदा हो जाती हैं । सालिके चावल बढ़िया होते हैं । चावल जितने बढ़िया होते हैं, उतना ही पानी ज्यादा माँगते हैं । उनको पानी हरदम चाहिये ।
‘रा’ और ‘म’- ये दो श्रेष्ठ वर्ण हैं । ऐसे ही श्रावण और भाद्रपद इन दो मासों की वर्षा-ऋतु कही जाती है । श्रेष्ठ भक्त के यहाँ ‘राम’ नामरूपी वर्षा की झड़ी लगी रहती है । आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं -
आखर मधुर मनोहर दोऊ ।
बरन बिलोचन जन जिय जोऊ ॥
(मानस, बालकाण्ड २० । १)
ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं । ‘मधुर’ कहनेका मतलब है कि रसना में रस मिलता है । ‘मनोहर’ कहनेका तात्पर्य है कि मनको अपनी ओर खींच लेता है । जिन्होंने ‘राम’ नामका जप किया है, उनको इसका पता लगता है, और आदमी नहीं जान सकते । विलक्षण बात है कि ‘राम-राम’ करते-करते मुखमें मिठास पैदा होता है । जैसे, बढ़िया दूध हो और उसमें मिश्री पीसकर मिला दी जाय तो वह कैसा मीठा होता है, उससे भी ज्यादा मिठास इसमें आने लगता है ।‘राम’ नाममें लग जाते हैं तो फिर इसमें अद्भुत रस आने लगता है । ऐसे ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं । ‘बरन बिलोचन जन जिय जोऊ’- ये दोनों अक्षर वर्णमालाकी दो आँखें हैं । शरीरमें दो आँखें श्रेष्ठ मानी गयी है । आँखके बिना जैसे आदमी अन्धा होता है, ऐसे ‘राम’ नामके बिना वर्णमाला भी अन्धी है । 
राम ! राम !! राम !!!

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